प्रयागराज में महाकुंभ 2025 (Mahakumbh 2025) का आयोजन हो रहा है और इस समय वहां लाखों श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगा रहे हैं। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा जिस समूह के बारे में हो रही है, वह हैं नागा साधु। ये साधु अपनी जीवनशैली, तपस्या और परंपराओं के लिए जाने जाते हैं। इनकी विशेषताएं इतनी अलग होती हैं कि आम आदमी इनसे हैरान हो जाता है। खासकर जब ये ठंड के मौसम में बिना कपड़ों के गंगा में डुबकी लगाते हैं, तो यह देखने वाले लोग बेशक चौंक जाते हैं।
आज हम आपको नागा साधुओं से जुड़ी कुछ ऐसी दिलचस्प और महत्वपूर्ण बातें बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में आपको जरूर जानना चाहिए।
1. ठंड में क्यों नहीं लगती इन्हें ठंड?
नागा साधु अपनी कठोर साधना और योगाभ्यास के जरिए अपने शरीर को इतना मजबूत बना लेते हैं कि उन्हें न तो ठंड का असर होता है और न ही गर्मी का। इन साधुओं का कहना है कि वे अपने शरीर को योग और साधना के माध्यम से इस कदर ताकतवर बना लेते हैं कि हर मौसम का प्रभाव उन पर नहीं पड़ता। खासकर ठंडी से बचने के लिए ये कई विशेष प्रकार के योगाभ्यास करते हैं। इनमें सबसे प्रमुख हैं अग्नि साधना और नाड़ी शोधन। इन विधियों से शरीर को अंदर से गर्म रखने में मदद मिलती है, जिससे ठंडी के मौसम में भी ये साधु बिना कपड़ों के सहज रूप से रहते हैं।
2. ठंडी हवाओं से बचाती है भस्म
नागा साधु अपने शरीर पर भस्म का लेप लगाते हैं, जो न केवल उनके शरीर को ठंडी हवाओं से बचाता है, बल्कि उनके लिए एक प्राकृतिक इंसुलेटर की तरह काम करता है। यह भस्म आग से तैयार की जाती है और इसके बारे में माना जाता है कि यह शरीर के तापमान को बनाए रखने में मदद करती है। इसके अलावा, नागा साधु अपने खान-पान का भी खास ध्यान रखते हैं, ताकि शरीर में अंदर से गर्माहट बनी रहे।
3. शस्त्र विद्या में निपुण
कहते हैं कि जब जगद्गुरु शंकराचार्य ने भारत में चार मठों की स्थापना की थी, तो उन मठों की सुरक्षा के लिए एक विशेष समूह का गठन किया था। यह समूह उन साधुओं से बना था, जो निडर, बहादुर और सांसारिक मोह-माया से मुक्त थे। इन्हीं साधुओं का समूह बाद में “नागा साधु” कहलाया। इन साधुओं को शस्त्र विद्या में निपुण होने की विशेष शिक्षा दी जाती है ताकि वे अपनी सुरक्षा के साथ-साथ समाज की रक्षा भी कर सकें। इन साधुओं के पास ढेर सारे शस्त्र होते हैं और इनका शस्त्रों के प्रति एक गहरा ज्ञान होता है।
4. निर्वस्त्र होने के पीछे की वजह
नागा साधु अपनी निर्वस्त्रता को एक विशेष रूप में देखते हैं। उनका मानना है कि जब कोई इंसान जन्म लेता है, तो वह बिना कपड़ों के ही पैदा होता है। वे इसे प्राकृतिक अवस्था मानते हैं और कहते हैं कि ईश्वर ने इंसान को इस रूप में बनाया है, इसलिए कपड़े पहनने की कोई आवश्यकता नहीं है। नागा साधु मानते हैं कि उनकी असली अवस्था वही है, जो प्रकृति ने उन्हें दी है। इसलिए वे अपने शरीर पर सिर्फ भस्म लगाते हैं और किसी प्रकार के वस्त्र नहीं पहनते।
5. नागा साधु बनने की कठिन प्रक्रिया
नागा साधु बनने के लिए एक लंबी और कठिन साधना से गुजरना पड़ता है। यह प्रक्रिया 6 से 12 साल तक चल सकती है, जिसमें ब्रह्मचर्य का पालन करना बेहद जरूरी होता है। इस दौरान साधु को अपने गुरु से यह विश्वास दिलाना होता है कि वह इस मार्ग पर चलने के लिए पूरी तरह से तैयार है और भगवान को समर्पित हो चुका है। नागा साधु बनने के लिए व्यक्ति को अपने सारे रिश्ते-नाते छोड़कर अपने जीवन को पूरी तरह से भगवान के प्रति अर्पित करना होता है। इसके बाद उसे एक अखाड़े में शामिल किया जाता है, जहां उसकी ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है।
महाकुंभ में नागा साधुओं की अहमियत
महाकुंभ का आयोजन केवल धार्मिक आस्था का उत्सव नहीं है, बल्कि यह समाज और संस्कृति के लिए भी एक महत्वपूर्ण घटना है। नागा साधु इस महाकुंभ का एक अभिन्न हिस्सा हैं और उनकी उपस्थिति श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनती है। इन साधुओं की तपस्या और उनके जीवन के सिद्धांत समाज को यह सिखाते हैं कि अगर इरादा मजबूत हो, तो किसी भी कठिनाई से पार पाया जा सकता है।
नागा साधु न केवल अपनी कठोर साधना से दूसरों को प्रेरित करते हैं, बल्कि वे भारतीय संस्कृति और आस्था के भी प्रतीक बन गए हैं। महाकुंभ जैसे आयोजनों में उनकी उपस्थिति इसे और भी खास बना देती है, और ये साधु एक अनोखी आस्था और जीवनशैली का प्रतीक बनते हैं।