महाराष्ट्र में एक नए एक्सप्रेस-वे की योजना है, जो नागपुर और गोवा को जोड़ने वाला है। यह एक्सप्रेस-वे करीब 802 किलोमीटर लंबा होगा और इसे “नागपुर-गोवा शक्तिपीठ एक्सप्रेस-वे” के नाम से जाना जाएगा। हालांकि, इस प्रोजेक्ट की शुरुआत को लेकर राज्य के किसान नेताओं में मतभेद और विरोध के सुर सुनाई दे रहे हैं। खासकर महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा इलाकों के किसान भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं और मुआवजे की कमी को लेकर सरकार पर निशाना साध रहे हैं।
एक्सप्रेस-वे की अनुमानित लागत और विरोध के कारण
इस एक्सप्रेस-वे की अनुमानित लागत 86,000 करोड़ रुपये बताई जा रही है। यानी, 1 किलोमीटर पर करीब 107 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। इस आंकड़े को लेकर किसानों का कहना है कि यह लागत बहुत अधिक है, क्योंकि NHAI ने भूमि अधिग्रहण के लिए 20-25 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर का बेंचमार्क तय किया है। पूर्व सांसद और किसान नेता राजू शेट्टी ने इस पर आपत्ति जताई है और इसे ठेकेदारों के फायदे के लिए प्रस्तावित किया जा रहा बताया है।
राजू शेट्टी का कहना है, “यह परियोजना किसानों के लिए नहीं, बल्कि ठेकेदारों और बड़े व्यापारियों के लिए बनाई जा रही है। इस एक्सप्रेस-वे के लिए जो भूमि अधिग्रहण किया जाएगा, उससे किसानों को बड़ा नुकसान होगा।”
विरोध और समर्थन: किसानों का नजरिया
इस परियोजना के खिलाफ विदर्भ, मराठवाड़ा, सांगली और कोल्हापुर जैसे क्षेत्रों के किसान खड़े हुए हैं। उनका मुख्य विरोध विस्थापन, कृषि भूमि के नुकसान और कम मुआवजे को लेकर है। किसान नेताओं का कहना है कि एक्सप्रेस-वे के निर्माण के दौरान जो भूमि अधिग्रहण किया जाएगा, उससे न सिर्फ उनकी उपजाऊ जमीन जाएगी, बल्कि उन्हें सही मुआवजा भी नहीं मिलेगा।
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के किसान इस परियोजना का समर्थन कर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि यह एक्सप्रेस-वे बनता है, तो विदर्भ में कई नई परियोजनाएं आएंगी, जो स्थानीय रोजगार के अवसर पैदा करेंगी। संजय ढोले, एक ऐसे किसान नेता हैं जो विदर्भ में इस परियोजना का समर्थन करते हैं। उनका कहना है, “यह परियोजना हमारे क्षेत्र के लिए विकास का मार्ग खोलेगी और कई मेगा निवेश परियोजनाएं आएंगी, जो रोजगार सृजन में मदद करेंगी।”
परियोजना के खिलाफ गिरीश फोंडे का बयान
इस विरोध का नेतृत्व करने वाली समिति “शक्तिपीठ राजमार्ग विरोधी संघर्ष समिति” के समन्वयक गिरीश फोंडे ने भी सरकार को घेरते हुए कहा कि राज्य सरकार इस प्रोजेक्ट के खिलाफ हुए विरोध को नजरअंदाज कर रही है। उनका कहना था, “सरकार ये गलत बयान दे रही है कि इस एक्सप्रेस-वे का विरोध सिर्फ कोल्हापुर जिले में हो रहा है। हकीकत यह है कि यह विरोध महाराष्ट्र के 12 जिलों में हो रहा है, जिनसे यह एक्सप्रेस-वे गुजरने वाला है।”
किसानों का चेतावनी: “करो या मरो की लड़ाई”
किसान नेताओं ने यह भी कहा कि यदि सरकार इस परियोजना को किसानों पर थोपने की कोशिश करती है, तो वे विरोध को और तेज करेंगे। “करो या मरो की लड़ाई” लड़ने का संकल्प लिया गया है। उनका कहना है कि अगर सरकार ने इस एक्सप्रेस-वे का काम शुरू किया तो वह गंभीर परिणाम भुगतेगी।
भूमि अधिग्रहण और मुआवजा विवाद
राजू शेट्टी ने इस परियोजना की सबसे बड़ी समस्या भूमि अधिग्रहण और मुआवजे की राशि को बताया है। उनका कहना है कि नागपुर-गोवा एक्सप्रेस-वे के लिए जो मुआवजा किसानों को दिया जाएगा, वह मुंबई-नागपुर समृद्धि एक्सप्रेस-वे के मुकाबले केवल 40 प्रतिशत होगा। इसे लेकर किसानों में नाराजगी देखी जा रही है।
परियोजना की अनुमानित लागत और भूमि अधिग्रहण
यह परियोजना 86,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से तैयार की जाएगी। सूत्रों के मुताबिक, इसके लिए 8,419 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा, जिसमें से लगभग 8,100 हेक्टेयर भूमि निजी स्वामित्व वाली कृषि भूमि होगी। इस भूमि अधिग्रहण पर विवाद बढ़ता जा रहा है क्योंकि किसानों का कहना है कि उनकी उपजाऊ भूमि को बिना उचित मुआवजे के छीना जा रहा है।
मुख्यमंत्री का बयान
पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने पिछले साल इस प्रोजेक्ट पर विरोध के बाद कहा था कि राज्य सरकार इसे लोगों पर नहीं थोपेगी। हालांकि, परियोजना का विरोध और किसानों की नाराजगी कम होती नहीं दिख रही है।