देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) राजीव कुमार 18 फरवरी को अपने पद से रिटायर होने वाले हैं, जिससे नए मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिए माहौल गर्म हो गया है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण बैठक साउथ ब्लॉक में हुई, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी भी मौजूद थे। यह बैठक सीईसी की नियुक्ति को लेकर चल रही चर्चाओं के बीच हुई।
बैठक के बाद कांग्रेस ने इसका विरोध किया और कहा कि 19 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर सुनवाई होने वाली है, ऐसे में यह बैठक आयोजित करना उचित नहीं था। कांग्रेस का कहना था कि इस चयन प्रक्रिया में सिर्फ कार्यपालिका को नहीं, बल्कि एक संतुलित और निष्पक्ष निर्णय लिया जाना चाहिए।
कांग्रेस का आरोप – यह बैठक अनावश्यक थी
बैठक के बाद कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 19 फरवरी को सुनवाई तय की है, इसलिए आज की बैठक को स्थगित किया जाना चाहिए था। माकन ने कहा, “इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद ही कोई फैसला लिया जाना चाहिए था। बैठक का आयोजन इससे पहले नहीं होना चाहिए था।”
संस्थाओं के समन्वय की बात
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद मनु सिंघवी ने भी इस बैठक के खिलाफ आवाज उठाई और कहा कि चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक संस्थाओं के साथ संतुलित और सही समन्वय बनाए रखना जरूरी है। उन्होंने कहा, “कांग्रेस का मानना है कि इस चयन प्रक्रिया में संस्थाओं के समन्वय और संविधान की आत्मा का सही पालन होना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सीईसी की नियुक्ति केवल कार्यपालिका के चयन से न हो, बल्कि इसमें न्यायपालिका का भी संतुलित हस्तक्षेप हो।”
सिंघवी ने यह भी कहा कि नए कानून में कई खामियां हैं और यह मामला लोकतंत्र के हित में सही दिशा में जाना चाहिए।
नए कानून के तहत सर्च कमेटी का गठन
सरकार ने सीईसी की नियुक्ति के लिए एक सर्च कमेटी का गठन किया था, जिसकी अगुवाई केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल कर रहे हैं। इस कमेटी में वित्त और कार्मिक विभाग के सचिव भी सदस्य हैं। सर्च कमेटी ने सीईसी और निर्वाचन आयुक्त (EC) के पद के लिए पांच सचिव स्तर के अधिकारियों के नामों की सूची बनाई। अब प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति को इनमें से सीईसी और ईसी के नामों का चयन करना है।
चयन समिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल हैं।
कांग्रेस की चिंता – कार्यपालिका का अत्यधिक प्रभाव
कांग्रेस पार्टी का मुख्य आरोप यह है कि नए नियमों के तहत कार्यपालिका का अत्यधिक प्रभाव बढ़ गया है, जिससे निर्वाचन आयोग की स्वायत्तता को खतरा हो सकता है। कांग्रेस का कहना है कि यह कोई मामूली मामला नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र की मजबूती और चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता से जुड़ा हुआ है।
कांग्रेस का कहना है कि जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई करने वाला है, तो ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह को इस मामले में बिना सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आगे बढ़ने का कोई अधिकार नहीं था।
क्या है चयन समिति का उद्देश्य?
मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिए पहले वरिष्ठता के आधार पर चयन होता था, लेकिन अब नए नियमों के तहत सर्च कमेटी के माध्यम से यह प्रक्रिया की जाती है। यह सर्च कमेटी एक सूची तैयार करती है, और फिर चयन समिति उस सूची से सीईसी और निर्वाचन आयुक्त का नाम तय करती है।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति को इस प्रक्रिया में विशेष रूप से चयन करना होता है, ताकि निर्वाचन आयोग का काम निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से किया जा सके। हालांकि, कांग्रेस का यह मानना है कि इस प्रक्रिया में संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है, और इसमें न्यायपालिका का भी सही हस्तक्षेप होना चाहिए।
सरकार का पक्ष – प्रक्रिया में पारदर्शिता
सरकार का कहना है कि इस प्रक्रिया को पारदर्शी और संविधान के अनुरूप रखा गया है। सरकार ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग के नामों का चयन लोकतांत्रिक तरीके से किया जाएगा, जिससे किसी भी प्रकार का पक्षपाती निर्णय न हो। सरकार के अनुसार, चयन समिति पूरी प्रक्रिया को निष्पक्ष और सही तरीके से पूरा करेगी।
हालांकि, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि यह पूरी प्रक्रिया कार्यपालिका के प्रभाव में हो सकती है, जो चुनाव आयोग की स्वायत्तता को प्रभावित कर सकती है।