इस बार कैसे करेंगी मायावती सोशल इंजीनियरिंग, 38 सीटों पर बहनजी कैसे खेलेगी दांव

उत्तरप्रदेश में सियासी गठबंधन हो चुका है. सपा-बसपा सीटों के बंटवारे का ऐलान किया जा चुका है लेकिन इस बार फॉर्मूला थोड़ा अलग है-‘सीटें कम और जीतें ज्यादा’, इसीलिए हर किसी की निगाहें मायावती की नई सोशल इंजीनियरिंग पर टिकी हुई हैं.

उत्तरप्रदेश में 80 सीटें हैं जिनमें से मायावती की पार्टी 38 सीटों पर और अखिलेश की पार्टी भी 38 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरेंगी. मायावती का लक्ष्य केंद्र में सत्ता बैलेंस करने का रहा है और इसी लक्ष्य के साथ वो हमेशा 80 सीटों पर चुनाव लड़ती आई है.

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गौरतलब है कि 1989 से 2014 के आम चुनाव तक बसपा ने सर्वाधिक 20 सीटें 2009 में तब जीतीं, जब वह अपने बलबूते प्रदेश की सत्ता पर काबिज थी. यह उपलब्धि 2007 के विधानसभा चुनाव से शुरू की गई सोशल इंजीनियरिंग का नतीजा मानी जाती रही है. हालांकि उनको य उपलब्धि फिर कभी हासिल नहीं हुई.

क्या थे पिछले चुनावों के आंकड़े?

आम चुनावों में प्रदेश में बसपा की सीटें
वर्ष–सीटें जीती
1991–01
1996–06
1998–04
1999–14
2004–19
2009–20
2014—00

2014 की सोशल इंजीनिरिंग

बसपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में  21 ब्राह्मण, 19 मुस्लिम, 17 अनुसूचित जाति, 8 ठाकुर और अन्य पिछड़ा वर्ग से 15 लोगों को टिकट दिए थे. इस बार सोशल इंजीनियरिंग 38 सीटों में करनी होगी.

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क्या नए कलेवर में पेश होगी सोशल इंजीनियरिंग ?

बसपा के एक जिम्मेदार नेता ने बताया कि पार्टी सोशल इंजीनियरिंग से पीछे नहीं हटने जा रही है. गठबंधन की वजह से सीटें आधी से भी कम रह गई हैं. ऐसे में इस बार सोशल इंजीनियरिंग नए कलेवर में सामने आएगा. इस बार की सोशल इंजीनियरिंग में ‘सीटें कम-जीतें ज्यादा’ की ध्वनि होगी और पार्टी अपने सर्वकालिक प्रदर्शन से अच्छे नतीजे लाएगी.
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