न्यूज़ीलैंड की राजधानी वेलिंगटन में हजारों माओरी लोगों ने एक नए विधेयक के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। यह विधेयक माओरी समुदाय के अधिकारों पर हमला करने वाला माना जा रहा है। विरोध प्रदर्शन में शामिल लोग वेटांगी संधि को फिर से परिभाषित करने के प्रस्ताव को खारिज करने की मांग कर रहे थे। माओरी समुदाय का मानना है कि यह विधेयक उनके स्वदेशी अधिकारों को कमजोर करता है।
विरोध की शुरूआत और प्रदर्शन
यह विरोध मार्च दस दिन पहले न्यूजीलैंड के उत्तरी द्वीप से शुरू हुआ था और वेलिंगटन तक पहुंचते-पहुंचते यह देश के सबसे बड़े विरोध प्रदर्शनों में से एक बन गया। प्रदर्शनकारियों ने इस बिल के खिलाफ अपनी आवाज उठाई, जिसमें 35,000 लोग शामिल थे। यह विरोध “हिकोई मो ते तिरिटी” नामक मार्च का हिस्सा था, जो माओरी अधिकारों की रक्षा करने के लिए किया गया था। प्रदर्शनकारियों ने इसे न्यूजीलैंड की संसद के बाहर समाप्त किया और विधेयक को खारिज करने की मांग की।
विधेयक की क्या है खासियत?
यह विधेयक, जिसे एसीटी पार्टी के सांसद डेविड सेमोर ने पेश किया है, वेटांगी संधि के सिद्धांतों को फिर से परिभाषित करने की कोशिश करता है। उनका कहना है कि माओरी समुदाय को विशेष अधिकार देने से देश में दोहरी व्यवस्था बन गई है। इस विधेयक के द्वारा यह कोशिश की जा रही है कि सभी नागरिकों पर समान सिद्धांत लागू हों, चाहे वे माओरी हों या नहीं।
माओरी समुदाय और उनका इतिहास
माओरी न्यूजीलैंड के मूल निवासी हैं और उनका देश की संस्कृति में गहरा प्रभाव है। वे 1300 के दशक में पोलिनेशिया से न्यूजीलैंड पहुंचे थे और यहाँ अपनी भाषा और संस्कृति को विकसित किया। 1840 में वेटांगी संधि के तहत माओरी और ब्रिटिश सरकार के बीच एक समझौता हुआ था, जिसमें माओरी समुदाय को उनके अधिकारों की रक्षा का वादा किया गया था।
विधेयक पर विवाद और प्रतिक्रिया
यह विधेयक माओरी समुदाय में भारी विवाद का कारण बन चुका है। 22 वर्षीय माओरी सांसद हाना-राविती माईपी-क्लार्क ने इस विधेयक को संसद में फाड़ दिया, और उनका यह कदम सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। माओरी नेता इसे उनकी संस्कृति और अधिकारों के खिलाफ मानते हैं। उनका कहना है कि यह विधेयक वेटांगी संधि की भावना के खिलाफ है, जो माओरी जनजातियों को विशेष अधिकारों की गारंटी देता है।
विरोध के कारण विधेयक की पारित होने की संभावना अब न के बराबर नजर आती है, क्योंकि विभिन्न पार्टियों ने इसका विरोध किया है। इसके बावजूद, इस विधेयक ने न्यूजीलैंड में माओरी अधिकारों पर एक नई बहस को जन्म दिया है और यह दिखाता है कि देश में स्वदेशी अधिकारों की रक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं अभी भी बनी हुई हैं।