नई दिल्ली: महिला सशक्तिकरण का मुद्दा अमूमन हर राजनीतिक दल उठाते रहे हैं और खासतौर से चुनाव के समय वे इसे जोर-शोर से उठाते रहे हैं। लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो यह सिर्फ बयानबाजी प्रतीत होती है। पहली लोकसभा में जहां 24 महिला सांसद थीं, वहीं मौजूदा यानी 16वीं लोकसभा में 66 महिलाएं संसद में उपस्थिति दर्ज करा सकीं हैं। यानी पहली संसद से अबतक संसद में महिलाओं की संख्या में मात्र 42 की ही वृद्धि हुई है।
निवर्तमान 16वीं लोकसभा की बात करें तो सदन की कुल संख्या 543 में से केवल 12 फीसदी यानी 66 महिलाएं ही सदन की चौखट तक पहुंच पाईं। लोकसभा के लिए पहला चुनाव 67 वर्ष पहले हुआ था और इतना समय बीतने के बाद यह स्थिति है। संसद में लंबित महिला आरक्षण विधेयक अगर पारित हो जाता तो कम से कम 33 फीसदी यानी 179 महिलाएं संसद पहुंचने में कामयाब होतीं।
पहली लोकसभा 1952 में गठित हुई थी, जिसमें 24 महिला सांसद थीं। दूसरी लोकसभा (1957) में भी यही आंकड़ा था। लोकसभा वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, तीसरी लोकसभा (1962-67) में यह संख्या बढ़कर 37 पहुंची। इसके बाद चौथी, पांचवीं और छठी लोकसभा में यह संख्या गिरकर 33, 28 और 21 रह गई। सातवीं लोकसभा (1980-84) में यह संख्या बढ़कर 32 पहुंची, वहीं आठवीं लोकसभा (1984-89) में 45 महिलाएं निर्वाचित होकर संसद पहुंचीं।
फिर नौवीं लोकसभा (1989) में यह संख्या गिरकर 28 हो गई। उसके बाद से हालांकि संसद में महिलाओं की आबादी में मामूली मगर कमोबेश इजाफा ही देखने को मिला है। 10वीं लोकसभा (1991-96) में 42 महिलाएं निर्वाचित हुईं और 11वीं लोकसभा यह संख्या एक घटकर 41 रही। 12वीं लोकसभा में 44 महिला सांसद थीं तो 13वीं और 14वीं 52 महिलाएं संसद पहुंचीं। 15वीं लोकसभा (2009-14) में इस संख्या में कुछ ज्यादा वृद्धि हुई और 66 महिलाएं संसद पहुंचीं। 16वीं लोकसभा में इसमें दो और का इजाफा हुआ और संख्या 68 महिलाएं संसद पहुंचीं।
1952 में लोकसभा की शुरुआत से लेकर 15वीं लोकसभा के पहले तक कोई महिला लोकसभाध्यक्ष नहीं बनी। 15वीं लोकसभा में कांग्रेस की मीरा कुमार जहां पहली महिला लोकसभाध्यक्ष बनीं, वहीं 16वीं लोकसभा में भाजपा की सुमित्रा महाजन ने यह पद संभाला। राजनीतिक पार्टियां जब तब महिला सशक्तिकरण और संसद में महिला आरक्षण दिए जाने की हामी भरती रही हैं, लेकिन जमीन पर यह अब तक उतर नहीं पाया है। कांग्रेस 2019, 2014 और 2009 में घोषणा-पत्र में महिला आरक्षण की घोषणा कर चुकी है। भाजपा भी 2014 और 2019 में वायदा कर चुकी है। माकपा भी 1999, 2009 और 2019 में घोषणा-पत्र में वादे कर चुकी है।
अब तक हालांकि किसी भी पार्टी ने अपना वादा नहीं निभाया और सदन में महिलाओं की आबादी एक-चौथाई तक भी नहीं पहुंच सकी है।