गीता ध्यान यज्ञ में अनुभव से जानिए भगवान कृष्ण की मूल शिक्षाः पवित्र ओंकार

बीकानेर, राजस्थान: बीकानेर में पहली बार ओशो गीता ध्यान यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है, जो साधकों के लिए एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव का अवसर प्रदान करेगा। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में लगभग सौ साधक-साधिकाएं भाग लेंगी, जो गीता की गहरी समझ और ओंकार के अद्वितीय अनुभव को प्राप्त करने का प्रयास करेंगे।

इस शिविर का संचालन सोनीपत, हरियाणा के श्री रजनीश ध्यान मंदिर से आए स्वामी शैलेंद्र सरस्वती और मां अमृत प्रिया जी करेंगे। इनके साथ गाजियाबाद से स्वामी अभय एवं मां कविता जी भी सहयोगी ध्यान प्रशिक्षक के रूप में शामिल होंगे। यह कार्यक्रम ध्यान और ध्यान की विधियों के माध्यम से गीता के गूढ़ अर्थ को समझने का एक अनूठा तरीका होगा।

भगवान कृष्ण का संदेश

गीता के अध्याय 9, श्लोक 17 में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया है कि वे इस संपूर्ण जगत के धाता, पिता, माता और पितामह हैं। उन्होंने ओंकार को सृष्टि की मौलिक ध्वनि बताया है, जो संघर्ष या टकराहट से नहीं, बल्कि मौन में सुनी जाती है। ओंकार की ध्वनि सृष्टि के आरंभ से है और जब सृष्टि समाप्त होगी, तब भी रहेगी। यह एक परम सत्य है, जिसे साधक अपने भीतर जाकर अनुभव कर सकते हैं।

ओंकार का महत्व

स्वामी शैलेंद्र जी ने स्पष्ट किया कि ओंकार कालातीत प्रणव है, जो केवल तब सुनाई देता है जब मन के विचार शांत होते हैं। इस ध्यान यज्ञ के माध्यम से साधक ओंकार की गूंज को सुनने और समझने का प्रयास करेंगे। गीता में कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति का अंतकाल में ध्यान आज्ञा चक्र पर हो और वह ओंकार श्रवण में लवलीन हो, तो उसकी मुक्ति सुनिश्चित है।

इस कार्यक्रम के माध्यम से साधक ध्यान की विभिन्न विधियों का अनुभव करेंगे, जो उन्हें ओंकार के ज्ञान के साथ-साथ आत्मा की गहराई में जाने में मदद करेंगी। ओशो की शिक्षाएं साधकों को केवल गीता का पाठ करने के बजाय उसके सार को अपने जीवन में उतारने की प्रेरणा देती हैं।

 

ओशो की दृष्टि

ओशो के द्वारा दी गई गीता की व्याख्यानमाला में करीब 350 घंटे के भीतर 219 प्रवचन शामिल हैं। उन्होंने गीता के प्रायोगिक पक्ष पर जोर दिया है, जिससे साधक इसे केवल पढ़ने के बजाय अनुभव करने पर ध्यान केंद्रित कर सकें।

ध्यान की विधियां

ओशो की ध्यान साधना की प्रमुख बातें हैं: कुंडलिनी का जागरण, दमित मनोवेगों का विसर्जन, साक्षी भाव में रमण, ओंकार श्रवण और अनुग्रह भाव में डूबना। ये सभी तत्व साधकों को ध्यान, भक्ति और ओंकार श्रवण के माध्यम से परमात्मा के करीब पहुंचाने में मदद करेंगे।

आध्यात्मिक विकास का पथ

इस ध्यान यज्ञ का उद्देश्य साधकों को ओंकार के गूढ़ ज्ञान से परिचित कराना और उन्हें अपने भीतर के मौन का अनुभव कराने का है। यह कार्यक्रम न केवल साधकों के लिए बल्कि उन सभी के लिए है जो अपने जीवन में आध्यात्मिकता को शामिल करना चाहते हैं।

 

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