सोनीपत, रविवार: श्री रजनीश ध्यान मंदिर, दीपालपुर में 6 दिनों तक चलने वाले आत्म-स्मरण साधना शिविर का समापन आज हो गया। इस कार्यक्रम में लगभग 90 साधक-साधिकाओं ने भाग लिया। समापन सत्र में मा अमृत प्रिया जी ने “साधारण जीवन ही कर्मयोग कैसे बने?” इस विषय पर गहन चर्चा की।
आत्म-स्मरण और कर्मयोग की आवश्यकता
इस चर्चा में पांच प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया, जो जीवन, कर्म और ध्यान का गहरा विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं।
कबीर का संदेश: अज्ञानता के पर्दे को हटाना
कबीर के प्रसिद्ध वाक्य “घूंघट के पट खोल” का अर्थ है अपने जीवन में मौजूद अज्ञानता और व्यस्तताओं को पहचानना और उनसे मुक्ति पाना। इस संदर्भ में उन्होंने तीन प्रकार की व्यस्तताओं को बताया:
शारीरिक व्यस्तता: दैनिक जीवन की जिम्मेदारियों और भौतिक दुनिया में उलझन।
मानसिक व्यस्तता: चिंताओं, विचारों और मानसिक द्वंद्वों से उत्पन्न तनाव।
हार्दिक व्यस्तता: भावनात्मक जुड़ाव, इच्छाएं, और तृष्णाएं। कबीर का संदेश है कि हमें इन व्यस्तताओं से मुक्त होकर अपने भीतर की सच्चाई को देखना चाहिए। हालांकि पूर्ण मुक्ति असंभव है, ध्यान और आत्मचिंतन द्वारा थोड़ी देर के लिए भी इनसे परे जाया जा सकता है।
कर्म से मुक्ति की असंभवता
जीवन के मौलिक सत्य के अनुसार, कर्म से पूर्ण मुक्ति असंभव है। चाहे धार्मिक लोग हों या वैज्ञानिक, सभी ने किसी न किसी रूप में कर्म से छुटकारा पाने की कोशिश की है।
धार्मिक लोग अक्सर संसार का त्याग करते हैं, आश्रमों में जाकर ध्यान लगाते हैं।
वैज्ञानिक जीवन को आसान बनाने के लिए यंत्रों का आविष्कार करते हैं। लेकिन, कोई भी व्यक्ति कर्म से पूरी तरह मुक्त नहीं हो सकता। यह जीवन की अनिवार्यता है कि कुछ न कुछ करते रहना होगा।
श्रीकृष्ण का निष्काम कर्म का सिद्धांत
श्रीकृष्ण ने गीता में निष्काम कर्म का सिद्धांत प्रस्तुत किया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि हमें कर्म करते रहना चाहिए, लेकिन फल की आसक्ति नहीं रखनी चाहिए। यह सच्चा संन्यास है—कर्म का त्याग नहीं, बल्कि फल की इच्छा का त्याग। इससे यह स्पष्ट होता है कि हर कार्य को एक साधना के रूप में देखना चाहिए।
ओशो का दृष्टिकोण: आनंद और जागरूकता के साथ कर्म
ओशो ने बताया कि जीवन में हर कर्म को आनंद और जागरूकता के साथ करना चाहिए। उन्होंने तीन मजदूरों का उदाहरण दिया:
पहला मजदूर दुखी है और उसे काम मजबूरी का नाम मानता है।
दूसरा मजदूर उदास है, लेकिन इसे अपने परिवार के लिए आवश्यक समझता है।
तीसरा मजदूर प्रसन्न है, उसे लगता है कि वह एक मंदिर का निर्माण कर रहा है। ओशो ने बताया कि कर्म से अधिक महत्वपूर्ण है कि हम किस भावदशा के साथ कर्म कर रहे हैं। जब हम हर कर्म को आनंदपूर्वक करते हैं, तब वही कर्म साधना बन जाता है।
अवसर का समान वितरण: जीवन का सार
इस विमर्श का मुख्य सार यह है कि कर्म से मुक्ति संभव नहीं है, लेकिन कर्म करने का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है। कबीर, कृष्ण और ओशो ने अलग-अलग तरीकों से यही कहा है कि जीवन का रहस्य कर्म के प्रति हमारी दृष्टि और भावदशा में छिपा है।
अंत में, मा अमृत प्रिया जी ने एक सुंदर रूपक प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि अस्तित्व ने हम सभी को समान साधन दिए हैं—तेल, दीपक, बाती, और माचिस। यह दर्शाता है कि हर व्यक्ति में समान क्षमता होती है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम इन साधनों का उपयोग कैसे करते हैं। कुछ लोग इनका सही संयोजन कर जीवन को प्रकाशित कर लेते हैं, जबकि अधिकांश लोग अज्ञानता में रहते हैं और साधनों का सही उपयोग नहीं कर पाते।
इस शिविर ने साधकों को यह सिखाया कि वे अपने जीवन में संतुलन कैसे बना सकते हैं और अपने साधनों का सही उपयोग कर सकते हैं। अंततः, साधक जीवन में जागरूकता, आनंद और बिना आसक्ति के कर्म करने का मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित हुए।