दिल्ली की राजनीति में इन दिनों एक नई जंग छिड़ी हुई है। आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और बीजेपी के फायरब्रांड नेता परवेश वर्मा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चल रहा है। मामला तब तूल पकड़ा जब परवेश वर्मा पर आरोप लगा कि उन्होंने महिला मतदाताओं को पैसे बांटे, ताकि वे बीजेपी के पक्ष में वोट करें। वीडियो फुटेज भी वायरल हो रहे हैं, जिनमें कुछ महिलाएं पैसे लेते हुए नजर आ रही हैं। केजरीवाल ने इसे गंभीर आरोप बताते हुए कहा कि परवेश वर्मा महिला वोटरों को लुभाने के लिए पैसे का इस्तेमाल कर रहे हैं।
परवेश वर्मा ने इस आरोप को खारिज किया है। उनका कहना है कि यह कोई चुनावी खरीद-फरोख्त नहीं थी, बल्कि यह एक सामान्य मदद थी, जिसे वे हमेशा करते आए हैं। बीजेपी ने भी उनके समर्थन में बयान दिया और कहा कि यह आरोप बेबुनियाद हैं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि केजरीवाल को अपनी हार का डर सता रहा है, इसलिए वह ऐसे आरोप लगा रहे हैं।
परवेश वर्मा का राजनीतिक सफर
परवेश वर्मा का राजनीतिक करियर काफी दिलचस्प रहा है। वह दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं, जिन्होंने जाट समुदाय में महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया था। 2008 में राजनीति में कदम रखने वाले परवेश ने 2013 में महरौली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी। इसके बाद, उन्होंने 2014 और 2019 में पश्चिमी दिल्ली से लोकसभा चुनावों में भी जीत दर्ज की थी।
अगले साल यानी 2024 में वह दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा सकते हैं। सूत्रों की मानें तो वह नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं, जो अरविंद केजरीवाल के लिए चुनौती साबित हो सकता है। नई दिल्ली सीट पर ही खुद केजरीवाल चुनावी मैदान में हैं, इस कारण दोनों के बीच सीधा मुकाबला हो सकता है।
जाट समुदाय से मजबूत रिश्ता और राजनीतिक ताकत
परवेश वर्मा की सबसे बड़ी ताकत उनके जाट समुदाय से मजबूत रिश्ते हैं। दिल्ली में जाट समुदाय की संख्या करीब 8 प्रतिशत है, और इन वोटों का प्रभाव दिल्ली की कई विधानसभा सीटों पर पड़ता है। जाट समुदाय में अपनी मजबूत पकड़ के कारण परवेश वर्मा बीजेपी के एक अहम नेता बन चुके हैं। उनके पिता साहिब सिंह वर्मा भी जाट समुदाय के प्रभावशाली नेता थे, और परवेश ने उनके नक्शेकदम पर चलते हुए इस समुदाय में अपनी पहचान बनाई है।
लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब परवेश वर्मा को पश्चिमी दिल्ली से लोकसभा टिकट नहीं मिला था, जिसके कारण जाट समुदाय में नाराजगी फैल गई थी। परवेश ने इस नाराजगी को शांत करने के लिए अपनी ओर से पूरी कोशिश की और बीजेपी में अपनी जगह बनाने में सफल रहे।
फायरब्रांड नेता के रूप में पहचान
परवेश वर्मा की छवि एक फायरब्रांड नेता की रही है। 2019 में जब नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, तब परवेश वर्मा ने बहुत तीखे बयान दिए थे, जिनसे वह सुर्खियों में आ गए थे। इसके अलावा, 2022 में उन्होंने एक खास समुदाय के व्यापार का बहिष्कार करने की भी अपील की थी। इस बयान ने उन्हें और विवादों में डाल दिया था।
2023 में जल विभाग से जुड़े एक विवाद में भी उनका नाम सामने आया। उन्होंने आरोप लगाया कि यमुना नदी की सफाई में खतरनाक रसायन डाले जा रहे हैं, जिससे नदी में झाग कम हो रही है। इस मामले में उनका एक वीडियो भी वायरल हुआ था, जिससे वह फिर से चर्चा में आ गए थे।
केजरीवाल का निशाना, परवेश वर्मा की बढ़ती ताकत
अरविंद केजरीवाल का परवेश वर्मा पर हमला कोई सामान्य बात नहीं है। उनके खिलाफ उठाए गए आरोप और केजरीवाल के बयान इस बात का संकेत देते हैं कि वे दिल्ली में परवेश वर्मा को एक गंभीर चुनौती मानते हैं। दरअसल, परवेश वर्मा की जाट समुदाय में मजबूत पकड़ और उनकी राजनीतिक छवि के कारण वह दिल्ली की राजनीति में एक बड़े खिलाड़ी के रूप में उभरने लगे हैं। इस स्थिति में केजरीवाल का उन पर आरोप लगाना और इस विवाद को तूल देना यह दिखाता है कि वह वर्मा को लेकर चिंतित हैं।
परवेश वर्मा ने अपनी जमीनी राजनीति और समुदायों के बीच संबंधों के जरिए अपनी पहचान बनाई है। वह बीजेपी के लिए एक अहम चेहरा बन चुके हैं और आगामी चुनावों में उनकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो सकती है।