सनातन धर्म में अपने से बड़े लोगो के सम्मान का और अपने से छोटों को प्यार देने की परंपरा का भाव छिपा हुआ है। जीवित रहते हुए परिजनों को सम्मान दिया जाता है और मृत्यु के बाद उनकी आत्मा के शांति के लिए विधि विधान से कर्मकांड किए जाते हैं। ये सभी कर्मकांड पितरों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए किए जाते हैं। इन्ही पितृ समर्पित कर्मकांडों में से एक है श्राद्ध। सोलह दिनों तक चलने वाले पितृपक्ष के दिनों में पितरों की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है।
लेकिन यह भी प्रश्न उठता है कि श्राद्ध कब किया जाए? पितृपक्ष के इन सोलह दिनों में श्राद्ध करने से अनन्त फ़ल प्राप्त होता है एवं पितृगण भी प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। देवकर्म को सुबह और शास्त्रों के मुताबिक ब्रह्ममुर्हूत में करने का प्रावधान है। इसी तरह पितृकर्म यानी श्राद्ध करने का सही समय दोपहर को माना गया है।
क्या है ?कुतप काल
पितृपक्ष के सोलह दिनों में कुतप काल में श्राद्ध कर्म करना चाहिए। अब हम जानते हैं कुतप काल के बारे में। दिन के आठवे मुहूर्त को कुतप काल कहा जाता है। दोपहर 11 बजकर 36 मिनट से लेकर 12 बजकर 24 मिनट तक का समय श्राद्ध कर्म के अत्यंत फलकारी माना गया है | दिन के इस खास समय में पितरों के निमित्त धूप डालकर, तर्पण, दान व ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए।
क्या है? गजच्छाया योग
शास्त्रों में गजच्छाया योग में श्राद्ध कर्म करने का अलग ही महत्व बताया गया है। इस समय में श्राद्ध कर्म करने से सर्वाधिक फ़ल मिलता है। गजच्छाया योग वर्षो बाद बनता है और इसमें श्राद्ध का अक्षय फल प्राप्त होता है। यह योग तब बनता है जब सूर्य हस्त नक्षत्र पर हो और त्रयोदशी के दिन मघा नक्षत्र होता है। यदि यह योग महालय यानी श्राद्ध पक्ष के दिनों में बन जाए तो अत्यंत फलकारी माना जाता है |