प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समय फ्रांस के दौरे पर हैं, और इस दौरान उन्होंने फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ कुछ महत्वपूर्ण वार्ता की, साथ ही उन्होंने ITER (इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर) प्रोजेक्ट का भी दौरा किया। यह प्रोजेक्ट फ्रांस के दक्षिणी इलाके कैडराचे में स्थित है और यह एक बड़ा कदम है भविष्य की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की दिशा में। तो, क्या है ITER प्रोजेक्ट, जिसमें भारत भी एक अहम भागीदार है? और इससे भारत को क्या फायदा होगा, जानिए इस रिपोर्ट में।
ITER क्या है और इसका उद्देश्य क्या है?
ITER दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे महत्वाकांक्षी फ्यूजन एनर्जी प्रोजेक्ट है, जो सूर्य की प्रक्रिया को धरती पर लाने की कोशिश कर रहा है। इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य यह है कि सूर्य जैसी न्यूक्लियर फ्यूजन प्रक्रिया को नियंत्रित तरीके से धरती पर किया जा सके, जिससे असीमित, स्वच्छ और सस्ती ऊर्जा का उत्पादन किया जा सके। यह प्रक्रिया सूरज में स्वाभाविक रूप से होती है, जिसमें हाइड्रोजन के परमाणु आपस में मिलकर हीलियम बनाते हैं और इस प्रक्रिया से ऊर्जा उत्पन्न होती है।
अब तक इस प्रक्रिया को नियंत्रित करना मानवता के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है, लेकिन ITER के जरिए इसे संभव बनाने की कोशिश की जा रही है। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत हाइड्रोजन के आइसोटोप्स (जैसे ड्यूटेरियम और ट्राइटियम) को बहुत उच्च तापमान और दबाव पर मिलाया जाएगा, जिससे फ्यूजन के द्वारा ऊर्जा प्राप्त हो सके। और सबसे खास बात यह है कि यह ऊर्जा पूरी तरह से कार्बन उत्सर्जन और ग्रीनहाउस गैसों से मुक्त होगी। इसका मतलब यह है कि धरती को हानिकारक प्रदूषण से बचाकर हमें ऊर्जा मिल सकेगी।
ITER प्रोजेक्ट में भारत का योगदान
ITER प्रोजेक्ट पर कुल 22 बिलियन यूरो (लगभग 2 लाख करोड़ रुपये) का खर्च अनुमानित है, और भारत का इसमें करीब 10 प्रतिशत योगदान है। भारत इस प्रोजेक्ट में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, खासकर तकनीकी योगदान में। भारत ने ITER के लिए दुनिया का सबसे बड़ा रेफ्रिजरेटर तैयार किया है, जो गुजरात में निर्मित हुआ है। इस रेफ्रिजरेटर का वजन 3,800 टन से भी ज्यादा है और इसकी ऊंचाई दिल्ली के कुतुब मीनार से आधी है। यह रेफ्रिजरेटर ITER के मैग्नेट्स को सुपरकंडक्टिंग मैगनेट्स में ठंडा रखने के लिए उपयोग किया जाता है।
भारत के इंस्टीट्यूट फॉर प्लाज्मा रिसर्च (ओवरसीज) ने भी ITER के मैग्नेटिक केज को ठंडा रखने में अहम भूमिका निभाई है। इस केज में हॉट प्लाज्मा को नियंत्रित किया जाता है, और यह काम भारत द्वारा तैयार किए गए क्रायोलाइंस नेटवर्क के माध्यम से होता है। यह नेटवर्क माइनस 269 डिग्री सेल्सियस पर काम करता है, और भारत ने इसके लिए एक 4 किलोमीटर लंबी क्रायोलाइंस बनाई है, जिसे फ्रांस भेजा गया है।
ITER की प्रक्रिया: सूरज जैसी ऊर्जा उत्पन्न करना
फ्यूजन एनर्जी की प्रक्रिया सूरज में स्वाभाविक रूप से होती है, जहां हाइड्रोजन के परमाणु आपस में मिलकर ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। अब, वैज्ञानिकों का लक्ष्य है कि इस प्रक्रिया को नियंत्रित तरीके से धरती पर लागू किया जा सके। ITER प्रोजेक्ट में, वैज्ञानिक हाइड्रोजन के आइसोटोप्स (ड्यूटेरियम और ट्राइटेरियम) को एक साथ मिलाने की कोशिश कर रहे हैं। यह प्रक्रिया इतनी शक्तिशाली होगी कि एक छोटे से फ्यूजन रिएक्टर से बहुत अधिक ऊर्जा प्राप्त की जा सकेगी।
सबसे बड़ी बात यह है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से पर्यावरण के लिए सुरक्षित होगी। इसमें किसी भी प्रकार के ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं होगा, न ही कोई रेडियोएक्टिव कचरा उत्पन्न होगा, और न ही जीवाश्म ईंधन की जरूरत पड़ेगी। इससे प्राप्त होने वाली ऊर्जा असीमित होगी, और यह पूरी दुनिया के लिए एक स्वच्छ ऊर्जा स्रोत बनेगी।
भारत को ITER से क्या फायदा होगा?
अब सवाल यह उठता है कि भारत को ITER प्रोजेक्ट से क्या लाभ होगा? सबसे पहले तो भारत को इस प्रौद्योगिकी का पूरी तरह से लाभ मिलेगा। ITER प्रोजेक्ट के द्वारा जो तकनीक विकसित होगी, वह भारत के ऊर्जा क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति ला सकती है। इसके जरिए भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरी तरह से स्वच्छ और सस्ती तरीके से पूरा कर सकेगा।
इसके अलावा, ITER में भारत का हिस्सा होने से हमारे वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को नई तकनीक के साथ काम करने का अवसर मिलेगा। इससे भारत में ऊर्जा के क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा मिलेगा और भविष्य में भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता और सुरक्षा भी मजबूत होगी।
इस प्रोजेक्ट में भारत का हिस्सा होने से भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक बड़ी पहचान भी मिलेगी। यह न केवल भारत की वैज्ञानिक क्षमता को साबित करेगा, बल्कि भविष्य में फ्यूजन ऊर्जा की दिशा में भारत एक वैश्विक नेता के रूप में उभर सकता है।
ITER: 21वीं सदी का सबसे महंगा साइंस प्रोजेक्ट
ITER प्रोजेक्ट को 21वीं सदी का सबसे महंगा और सबसे महत्वाकांक्षी साइंस प्रोजेक्ट माना जा रहा है। इसका कुल खर्च 22 बिलियन यूरो है, और यह इस समय तक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है, जिसमें सात देशों का सहयोग है। भारत, फ्रांस, चीन, रूस, दक्षिण कोरिया, जापान और यूरोपीय संघ (EU) इसके साझेदार हैं। इस प्रोजेक्ट की सफलता न केवल इन देशों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए फायदेमंद होगी, क्योंकि यह हमें एक नई, स्वच्छ और स्थिर ऊर्जा की दिशा में बढ़ने का मौका देगा।