इंडोनेशिया, जो दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश है, ने हाल ही में प्रबोवो सुबियांतो को अपने आठवें राष्ट्रपति के रूप में चुना है। 73 वर्षीय प्रबोवो ने राष्ट्रपति पद की शपथ लेते समय ‘कुरान’ पर हाथ रखकर अपने कर्तव्यों को निभाने का वादा किया। उनके शपथ ग्रहण समारोह में देश के सांसदों और अन्य देशों के गणमान्य व्यक्तियों की मौजूदगी ने इस पल को और भी खास बना दिया। हालांकि, उनकी राजनीतिक यात्रा और अतीत के कई विवाद भी इस नए युग की शुरुआत में चर्चा का विषय बने हुए हैं।
चुनावी जीत की कहानी
प्रबोवो सुबियांतो ने राष्ट्रपति चुनाव में जोको विडोडो के समर्थन से एक बड़ी जीत हासिल की। अपने चुनावी अभियान के दौरान, उन्होंने बहु-अरब डॉलर की नई राजधानी परियोजना को आगे बढ़ाने और घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कच्चे माल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का वादा किया। शपथ लेने के बाद, प्रबोवो ने इंडोनेशिया की जनता को संबोधित करते हुए कहा कि वह देश को विकास के नए रास्ते पर ले जाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। उनका मुख्य लक्ष्य है कि इंडोनेशिया को आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत बनाना है।
प्रबोवो का खौफनाक अतीत
हालांकि, प्रबोवो सुबियांतो का नाम सुनते ही अधिकांश इंडोनेशियाई नागरिकों के मन में डर का माहौल बन जाता है। उनका नाम मानवाधिकार उल्लंघन और कई असामाजिक गतिविधियों में संलिप्तता के आरोपों से जुड़ा हुआ है। प्रबोवो, जो एक पूर्व विशेष बल कमांडर हैं, अब राष्ट्रपति बन चुके हैं, और उनके कार्यकाल में देशवासियों की उम्मीदें भी काफी बढ़ गई हैं।
प्रबोवो का जन्म एक समृद्ध राजनीतिक परिवार में हुआ था। उनके पिता एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री थे और उन्होंने इंडोनेशिया के मंत्रिमंडल में सेवा की। उनके परिवार का राजनीतिक इतिहास और शिक्षा ने उन्हें विशेष दृष्टिकोण दिया। हालांकि, जब उनके पिता ने 1957 में विवाद के चलते देश छोड़ दिया, तब प्रबोवो ने अपने बचपन के कई साल यूरोप में बिताए।
इंडोनेशिया लौटने के बाद, प्रबोवो ने सेना में शामिल होने का निर्णय लिया। उन्होंने जल्दी ही इंडोनेशिया के विशिष्ट विशेष बल कोपासस में कप्तान के पद पर पदोन्नति हासिल की। हालांकि, पूर्वी तिमोर में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में उनके ऊपर लगे आरोपों की छाया उनके करियर पर बनी रही।
1990 के दशक के अंत में, जब तानाशाह सुहार्तो का शासन समाप्त हुआ, तो प्रबोवो को 20 से अधिक छात्र कार्यकर्ताओं के अपहरण का आरोप लगाया गया। इनमें से कई छात्र आज भी लापता हैं, और उनकी हत्या की आशंका जताई जाती है। इन घटनाओं ने प्रबोवो की छवि को धूमिल किया है।
राजनीतिक पुनर्वास
1998 में सेना से बर्खास्त होने के बाद, प्रबोवो को जॉर्डन में स्व-निर्वासन बिताना पड़ा। उन्हें ऑस्ट्रेलिया में यात्रा प्रतिबंध का सामना करना पड़ा। लेकिन 2019 में, उन्होंने देश में वापसी की और उन्हें रक्षा मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। उनकी इस वापसी ने राजनीतिक दृष्टिकोण से उन्हें और मजबूत किया।
प्रबोवो की शपथ ग्रहण समारोह में 40 से अधिक देशों के नेताओं ने भाग लिया। ब्रिटेन, अमेरिका, रूस और अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति ने उनकी स्थिति को और मजबूती प्रदान की है।
आगे की चुनौतियाँ
प्रबोवो ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में दो बार हार का सामना किया था, लेकिन अब जब वह राष्ट्रपति बन चुके हैं, तो उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों का सामना करना और अपनी नई नीतियों को लागू करना उनके लिए आसान नहीं होगा।
प्रबोवो सुबियांतो की कहानी एक जटिल राजनीतिक यात्रा है, जिसमें सैन्य तानाशाही से राष्ट्रपति बनने तक का सफर शामिल है। उनकी राष्ट्रपति पद की शपथ के बाद, देशवासियों की उम्मीदें और भी बढ़ गई हैं। अब यह देखना होगा कि क्या वह अपने अतीत के दाग को धोकर एक नए और बेहतर इंडोनेशिया का निर्माण कर पाते हैं या नहीं।