भारत के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के साउथ ब्लॉक ऑफिस लांज में हाल ही में कुछ इंटीरियर बदलाव किए गए, लेकिन इस बदलाव के बाद एक बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ है। दरअसल, इस लांज में पहले जो ऐतिहासिक पेंटिंग 1971 में पाकिस्तान के आत्मसमर्पण की थी, उसे हटा दिया गया है और उसकी जगह एक नई पेंटिंग लगा दी गई है। इसी को लेकर विपक्ष सरकार पर सवाल उठा रहा है, और इस बदलाव पर राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो गई है।
प्रियंका गांधी का आरोप – “सेना का अपमान हुआ है”
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने इस मुद्दे को संसद में उठाते हुए सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। प्रियंका का कहना था कि साउथ ब्लॉक में लगी वह ऐतिहासिक तस्वीर, जिसमें पाकिस्तान के जनरल नियाजी भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर रहे थे, हटाना सेना का अपमान है। प्रियंका गांधी ने कहा, “सेना के हेडक्वार्टर में जो यह तस्वीर लगी थी, उसमें पाकिस्तान की सेना भारत के सामने आत्मसमर्पण कर रही थी। इसे हटाकर सरकार ने भारतीय सेना का अपमान किया है। यह देश का मुद्दा है, इसे राजनीति का हिस्सा नहीं बनाना चाहिए। हम चाहते हैं कि वह तस्वीर वापस लगाई जाए।”
प्रियंका गांधी का यह बयान उस पेंटिंग की अहमियत को लेकर था, जो 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान की सेना द्वारा आत्मसमर्पण को दर्शाती थी। यह तस्वीर भारतीय सेना की वीरता और शौर्य का प्रतीक मानी जाती है, और अब इसे हटाना विपक्षी नेताओं के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया है।
नई पेंटिंग क्या दिखाती है?
नई पेंटिंग को लेकर सोशल मीडिया पर भी खूब चर्चा हो रही है। इस पेंटिंग में लद्दाख का पैंगांग लेक दिखाया गया है, जिसमें आधुनिक बोट्स और टैंक के अलावा, महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ को हांकते कृष्ण भी नजर आ रहे हैं। पेंटिंग में आसमान में हेलिकॉप्टर अपाचे और गरुड़ की छवि भी दिख रही है। यह पेंटिंग भारतीय सेना के आधुनिकरण और ट्रांसफ़ॉरमेशन को दर्शाती है। यह बदलाव साफ़ तौर पर यह संकेत दे रहा है कि अब भारतीय सेना का ध्यान पाकिस्तान के बजाय चीन जैसे देशों पर केंद्रित है, खासकर लद्दाख और अन्य सीमावर्ती इलाकों में।
पेंटिंग की इस छवि में यह भी दिखाया गया है कि भारतीय सेना अब एक इंटीग्रेटेड फोर्स के तौर पर उभर रही है, जो जमीनी, हवाई और समुद्री ताकतों के समन्वय से अपनी क्षमता को बढ़ा रही है। इसका मतलब यह है कि भारतीय सेना अब ज्यादा ताकतवर और तकनीकी दृष्टि से विकसित हो चुकी है, जो किसी भी प्रकार के हमले का जवाब तेजी से देने में सक्षम है।
रिटायर सैन्य अधिकारियों की प्रतिक्रिया
इस बदलाव पर कई रिटायर सैन्य अधिकारियों ने भी सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि 1971 की वह तस्वीर भारतीय सेना के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण था, जिसे हटाने का निर्णय ठीक नहीं था। वे मानते हैं कि इस तरह की ऐतिहासिक तस्वीरों को सम्मान देना चाहिए, क्योंकि ये भारतीय सेना के शौर्य और विजय का प्रतीक होती हैं।
पूर्व सेना अधिकारियों का यह भी कहना है कि इस बदलाव से भारतीय सेना की विरासत और उसकी वीरता को एक प्रकार से नकारा जा रहा है। उनका मानना है कि यह तस्वीर भारतीय सैन्य इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा थी और इसे साउथ ब्लॉक में सम्मानजनक स्थान मिलना चाहिए था।
केंद्र सरकार का जवाब
इस मामले में संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने लोकसभा में बयान देते हुए कहा कि 1971 की आत्मसमर्पण की पेंटिंग को पूरे सम्मान के साथ मानेकशॉ सेंटर में स्थापित किया गया है, ताकि अधिक से अधिक लोग इसे देख सकें और इससे प्रेरणा ले सकें। उन्होंने कहा, “ऐसे विषय जो भारतीय सेना के शौर्य और सम्मान से जुड़े हैं, उन पर राजनीति करना ठीक नहीं है। पहले यह विचार करना चाहिए कि इन मामलों में क्या सही है।”
उन्होंने यह भी बताया कि मानेकशॉ सेंटर में स्थापित की गई पेंटिंग को भारतीय सेना के लिए एक श्रद्धांजलि के रूप में रखा गया है, जहां इसे और अधिक लोग देख सकते हैं। उनका कहना था कि इस बदलाव का उद्देश्य केवल उस पेंटिंग को एक ज्यादा उपयुक्त स्थान पर स्थापित करना था, ताकि उसे ज्यादा लोग देख सकें।
भारतीय सेना का बयान
भारतीय सेना ने भी इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा, “1971 की पेंटिंग को उसके सबसे उपयुक्त स्थान मानेकशॉ सेंटर में स्थापित किया गया है। इसका उद्देश्य यह था कि इसे और ज्यादा लोग देख सकें। यह पेंटिंग जनरल उपेंद्र द्विवेदी और श्रीमती सुनीता द्विवेदी के नेतृत्व में मानेकशॉ सेंटर में स्थापित की गई है, जो भारतीय सेना के गौरव और शौर्य को दर्शाती है।”
सेना का यह भी कहना था कि साउथ ब्लॉक में जो पेंटिंग पहले लगी थी, उसे हटाने का कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं था। उनका कहना था कि यह निर्णय केवल उस पेंटिंग को एक नए और उपयुक्त स्थान पर स्थापित करने के लिए लिया गया था।