राफेल डील पर कोर्ट की क्लीन चिट के बाद भी नहीं मिले इन सवालों के जवाब ?

सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील में किसी भी तरह की जांच से इंकार कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि इस डील में किसी तरह की कोई अनियमितता नहीं पाई गई. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी जनहित याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा की यह सौदा देश की जरूरत थी.

लेकिन कोर्ट का फैसला आने के बाद अभी भी ऐसे कई सवाल है, जिनके जवाब अभी तक नहीं मिले है. और मोदी सरकार की तरफ से इन सवालों के जवाब मिलने की उम्मीद भी नहीं है.

राफेल सौदे को लेकर अब भी मूलभूत सवाल बना हुआ है कि यह डील कितने में हुई है. साथ ही अनिल अंबानी की कंपनी को किस आधार पर चुना गया यह सवाल अब भी बरकरार है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि उसे राफेल डील में ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला है जिसके आधार पर यह साबित हो सके की केन्द्र सरकार ने इस समझौते में रिलायंस को फायदा पहुंचाने का काम किया है. राफेल डील भारत और फ्रांस की सरकार के बीच हुई थी. और ऑफसेट पार्टनर चुनने का अधिकार कंपनी के पास था. लेकिन सवाल अब भी बना हुआ है कि दसॉल्ट ने किस आधार पर एचएएल की जगह रिलायंस को चुना.

36 राफेल विमानों का समझौता भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच हुआ. इस डील में विमान बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट को हुई कुल कमाई का आधा हिस्सा भारत में निवेश करना होगा. राफेल सौदे के इस पक्ष को ऑफसेट क्लॉज कहा गया.

डील के तहत दसॉल्ट को यह सुनिश्चित करना था कि सौदे की आधी रकम को वापस भारत के रक्षा क्षेत्र में निवेश करे. सवाल यह है कि निवेश जब इस डील के पैसे से होना था. और ऑफसेट क्लॉज भारत-फ्रांस सरकार की डील का हिस्सा है, तो ऐसे में यह निवेश भारत सरकार की एविएशन इकाई एचएएल की जगह ऐसी कंपनी को क्यों चुना गया जिसकी नींव करार के बाद रखी गई थी.

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