नई दिल्ली: राज्यसभा के उपसभापति पद के लिए सुबह 11 बजेे के बाद हुई वोटिंग में एनडीए के हरिवंश नारायण सिंह उपसभापति पद के लिए चुने गए. पहले वोटिंग के दौरान कुल 206 वोट पड़े. जिसमें एनडीए के हरिवंश के पक्ष में 115 वोट पड़े. हालांकि इस दौरान 2 सदस्य अनुपस्थित रहे.
लेकिन विपक्ष के कुछ सदस्यों की तरफ से आपत्ति आने के बाद उन्हें स्लिप के जरिये वोट डालने दिया गया. इसके बाद दोबारा हुई वोटिंग में कुल 222 वोट पड़े. इनमें एनडीए के हरिवंश को 125, जबकि यूपीए के बीके हरिप्रसाद को 105 वोट मिले. इसके बाद एनडीए के हरिवंश को उपसभापति पद के लिए चुने जाने की घोषणा सभापति द्वारा की गई.
हरिवंश नारायण सिंह के उपसभापति चुने जाने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने उन्हें बधाई देते हुए कहा, चुने जाने के बाद हरिवंश कुछ दलों के ही नहीं, पूरे सदन के डिप्टी चेयरमैन हैं. मेरा हमेशा मानना है कि डिप्टी चेयरमैन का झुकाव विपक्ष की तरफ ज्यादा होना चाहिए.
सांसदों पर हरिकृपा बनी रहेगी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन में अपने संबोधन में कहा कि हमारे लिए खुशी की बात है कि स्वास्थ्य लाभ के बाद अरुण जेटली जी भी हमारे बीच सदन में मौजूद हैं. अगस्त क्रांति में बलिया की बड़ी भूमिका थी. हरिवंश जी आज भी अपने गांव से जुड़े हुए हैं. हरिवंश जी को आरबीआई ने भी पसंद किया. हरिवंश उस कलम के धनी हैं, जिसने अपनी अलग पहचान बनाई. हरिवंश जी एक ऐसा व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने किताबें पढ़ीं भी बहुत और लिखी भी बहुत. एक सांसद के रूप में आपने सफल कार्यकाल का अनुभव सदन को कराया है. मुझे विश्वास है कि अब सदन का मंत्र बन जाएगा ‘हरिकृपा’. अब सबकुछ हरि भरोसे है. उम्मीद है सांसदों पर हरिकृपा बनी रहेगी.
बीजेपी ने पास कितने वोट
सदन में वोटिंग से पहले ही बीजेपी ने दावा किया कि पार्टी के पास 126 सदस्यों का समर्थन है. इसमें एनडीए के 91, अन्नाद्रमुक (13), टीआरएस (06), वाईएसआर कांग्रेस (02), इनेलोद (01), बीजेडी (09) सदस्य शामिल हैं. इसके अलावा अमर सिंह ने भी एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देने का ऐलान किया है. वहींं, आम आदमी पार्टी, पीडीपी और वाईएसआई ने वोटिंग का बहिष्कार करने का ऐलान किया था.
कौन हैं हरिवंश नारायण
हरिवंश नारायण सिंह का जन्म 30 जून 1956 को बलिया जिले के सिताबदियारा गांव में हुआ था. उन्होंने 1976 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए और 1977 में बीएचयू से ही पत्रकारिता में डिप्लोमा की पढ़ाई की और अपने कैरियर की शुरुआत टाइम्स समूह से की. इसके बाद हरिवंश ने कई प्रसिद्ध पत्रिकाओं में काम किया. इसके बाद वे 90 के दशक में बिहार के बड़े मीडिया समूह से जुड़े जहां उन्होंने दो दशक तक अपनी सेवाएं दी
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अपने कार्यकाल के दौरान हरिवंश ने बिहार के ज्वलंत विषयों और आर्थिक रुप से कमजोर बिहार की तस्वीर सरकार के सामने रखी. इसी दौरान वह नीतीश कुमार के करीब आए इसके बाद हरिवंश को जेडीयू का महासचिव बना दिया गया. साल 2014 में जेडीयू ने हरिवंश को राज्यसभा के लिए नामांकित किया और इस तरह से हरिवंश पहली बार संसद तक पहुंचे.
हरिवंश ने वर्ष 1990-91 के कुछ महीनों तक तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के अतिरिक्त सूचना सलाहकार (संयुक्त सचिव) के रूप में प्रधानमंत्री कार्यालय में भी काम किया. नब्बे के दशक में ही उन्होंने बिहार की स्थिति को केंद्र के सामने रखने के लिए दिल्ली में दस्तक दी.
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कहा जाता है कि दिल्ली से लेकर पटना तक नीतीश कुमार की बेहतर छवि बनाने में भी उनका खास योगदान रहा. दरअसल हरिवंश राजपूत जाति से आते हैं एनडीए उनके सहारे राजपूत वोट बैंक को अपना ओर खींचने की कोशिश में है. इसके साथ ही हरिवंश की साफ छवि होने के कारण भाजपा को किसी भी विरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा.