योगी पर सबसे ज्यादा है दबाव !

लखनऊ: राम मंदिर मुद्दा, यूपी मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चाओं के बीच बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह एक दिन का दौरा करके वापस दिल्ली जा चुके हैं. सूत्रों के मुताबिक बैठक में कई मुद्दों पर गर्मागरम बहस भी हुई, जिनमें राम मंदिर मुद्दे के साथ योगी सरकार के कामकाज की समीक्षा की गई. वहीं इस बैठक के बाद जो निष्कर्ष निकलकर सामने आया है, उससे साफ हो गया है कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को यूपी और योगी से बहुत अपेक्षाएं हैं, और इन्ही अपेक्षाओं के दबाव में देश का कोई सीएम सबसे ज्यादा दबा हुआ है तो वो हैं खुद योगी आदित्यनाथ.

कद्दावर नेताओं को चित करके हासिल की कुर्सी

केंद्र में मोदी, यूपी में योगी. 2017 के विधानसभा चुनाव में बंपर बहुमत हासिल करने वाली बीजेपी ने कभी इस नारे की कल्पना भी नहीं की थी. क्योंकि उसका पहला टार्गेट लंबे समय से सत्ता का सूखा खत्म करने का था. मोदी मैजिक के चलते यूपी में कमल की जमकर फसल उगी. जिसको काटने के लिए कई लोग अपने दलबल के साथ दावा ठोंक रहे थे. लेकिन सबसे ज्यादा पलड़ा भारी योगी का निकला. जिन्होंने आधा दर्जन से कद्दावर नेताओं को चित करते हुए कुर्सी हासिल की थी.

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योगी ने बीजेपी और संघ के सामने खुद को सबसे अलग और यूपी में दूसरों से ज्यादा प्रभावी दिखाया. इसके पीछे वजह भी उनके पास थी. क्योंकि कल्याण सिंह और मुरली मनोहर जोशी के बाद हिन्दुत्व का सबसे बड़ा चेहरा मौजूदा वक्त में कोई था तो वो योगी ही थे. जिसका इस्तेमाल बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा किया. यूपी में मोदी के बाद प्रत्याशियों में किसी की सबसे ज्यादा डिमांड थी तो योगी की ही.

यही परिपाटी 2017 के विधानसभा चुनाव में भी चली आई. इस बार बीजेपी ने योगी की हिन्दुत्व वाली छवि को खूब भुनाया. एक आंकड़े के मुताबिक यूपी में योगी ने सबसे ज्यादा रैलियां की. पूर्वांचल में पीएम मोदी को जीत दिलाने में भी बड़ी भूमिका निभाई. क्योंकि योगी भले ही गोरखपुर में रहते हो, लेकिन उनका सिक्का पूरे पूर्वांचल में चलता है. वाराणसी से लेकर इलाहाबाद तक योगी का डंका बजता है. यही वजह है कि योगी ने अपने आपको सबसे ज्यादा प्रभावी बताया और प्रदेश के सर्वोच्च पद की मांग की. जिसको टालना बीजेपी के बस की बात नहीं थी. संघ ने भी योगी का साथ दिया जिसका असर ये रहा कि कई दिनों तक नामों पर सहमति नहीं बन पाई. बाद में अन्तोगत्वा योगी के नाम पर मुहर लगी.

अब ऊंच-नीच का ठीकरा दूसरे पर नहीं फोड़ सकते

अब जबकि प्रदेश में योगी सबसे बड़े पद पर बैठे हैं, देश के सबसे बड़े राज्य के मुखिया है, ऐसे में जितना बड़ा पद, उतनी बड़ी जिम्मेदारी वाली बात सच साबित हो रही है. 2014, 2017 की परिस्थितियों के विपरित 2019 का दौर शुरु हो गया है. योगी के सामने तब कोई टारगेट नहीं था. सिर्फ पार्टी से मिली जिम्मेदारी को निभाने की ड्यूटी थी. अब परफॉर्मेंस करना उनके लिए जरूरी है, योगी इन दिनों कई मोर्चों पर अकेले लड़ रहे हैं, आज मैदान में वो कप्तान है, किसी ऊंच नीच का ठीकरा किसी दूसरे पर नहीं फोड़ सकते. पार्टी की मांग है कि 2019 में मोदी को केंद्र में बैठाने के लिए सर्वश्रेष्ठ रिजल्ट यूपी से आए. जिसके लिए योगी को एक्सट्रा बैटिंग करनी पड़ेगी. वहीं विधानसभा चुनाव के बाद सीएम की कुर्सी दिख रही थी. वो अब भी अपनी गोलबंदी में लगे हैं. पार्टी आलाकमान की सख्ती के बाद कुछ शांत है, तो कुछ भीतर खाने चमत्कार की उम्मीद में तरकीबें निकलाने में लगे रहते हैं. जबकि जनता कानून व्यवस्था से लेकर विकास की रफ्तार और यूपी में बदलाव की उम्मीद लगाए, योगी की तरफ देख रही है.

क्या कहते हैं राजनीतिक पंडित

यूपी के राजनीति के पंडितों की माने तो राममंदिर और हिंदुत्व की आग सुलगाए रखने के लिए योगी हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं. राम मंदिर मुद्दे को लेकर वो चैंपियन बनने की कोशिश कर रहे हैं. ताकि वो खुद को यूपी में हिन्दुत्व के साथ 2019 में खुद को साबित कर सकें. यूपी के वरिष्ठ पत्रकार रामेश्वर पांडे ने राजसत्ता एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा कि, अमित शाह ने एक दिन के दौरे पर कुछ नया नहीं किया है, मोहन भागवत ने जो ट्यून सेट किया है, उसी पर अमित शाह चल रहे हैं. दबाव के साथ ही योगी राम मंदिर निर्माण के चैंपियन बनने की भी कोशिश में हैं. हाल के दिनों में अपनी युवा वाहिनी को पुनर्जीवित करने की उनकी कोशिश को इस बात से जोड़कर देखा जा सकता है.

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कई दशकों तक यूपी की राजनीति को करीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला के मुताबिक देश में अगर कोई सीएम इस वक्त सबसे ज्यादा दबाव में है, तो वो हैं यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ. जिनपर परफॉर्मेंस का दबाव है. योगी को 2019 में अपना सर्वश्रेष्ठ देना है, ताकि केंद्र की सत्ता में मोदी काबिज हो सकें. इसके लिए वो विकास के साथ साथ हिन्दुत्व और राममंदिर समेत दूसरे मुद्दों को हवा देने में लगे हैं.

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