विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत और चीन के रिश्तों को लेकर बड़ा बयान दिया है। जीएमएफ ब्रुसेल्स फोरम 2025 में बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारत और चीन, दोनों ही ताकतवर देश, मिलकर एक नया संतुलन बना रहे हैं। ये दोनों पड़ोसी देश हैं, इसलिए रिश्ता और भी पेचीदा है। जयशंकर ने सीमा विवाद से लेकर व्यापार और आर्थिक मुद्दों तक, हर पहलू पर खुलकर बात की। यूरोप के रुख पर भी उन्होंने अपनी राय रखी। आइए, इसे आसान भाषा में समझते हैं।
भारत-चीन का रिश्ता: नया संतुलन, नई चुनौतियां
जयशंकर ने कहा कि भारत और चीन, दोनों ही तेजी से उभर रही ताकतें हैं। ये दोनों देश न सिर्फ पड़ोसी हैं, बल्कि इनके कुछ पड़ोसी देश भी एक जैसे हैं। ऐसे में इनके बीच एक जटिल संतुलन बन रहा है। उन्होंने कहा, “दुनिया में एक पेचीदा बैलेंस है। भारत और चीन, दोनों ताकतवर हो गए हैं। लेकिन पड़ोसी होने की वजह से इनके बीच रिश्ता और भी जटिल है।” सीमा विवाद, व्यापार, आर्थिक मुद्दे, सब कुछ इस रिश्ते को और पेचीदा बनाता है।
जयशंकर ने ये भी बताया कि भारत और चीन के आर्थिक और राजनीतिक मॉडल एक-दूसरे से बहुत अलग हैं। इस वजह से कई बार चिंताएं बढ़ती हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि ये अंतर एक-दूसरे को नुकसान पहुंचा सकते हैं। उन्होंने कहा, “ये रिश्ता बाहर से जितना आसान दिखता है, असल में उतना है नहीं। लोग सोचते हैं कि बस दो देश हैं, एक-दूसरे को बैलेंस करेंगे। लेकिन ये उससे कहीं ज्यादा जटिल है।”
सीमा विवाद: सबसे बड़ा मसला
सीमा विवाद पर जयशंकर ने साफ-साफ कहा कि ये भारत-चीन रिश्तों में सबसे बड़ा मुद्दा है। उन्होंने कहा, “चीन हमारा सबसे करीबी पड़ोसी है, लेकिन हमारी सीमा अभी तक तय नहीं हुई। ये हमारे रिश्तों में बड़ा फैक्टर है।” उन्होंने ये भी कहा कि भारत और चीन का रिश्ता सभ्यतागत स्तर पर भी है। दोनों देशों की आबादी एक अरब से ज्यादा है और दोनों का विकास एक साथ हो रहा है। लेकिन चीन ने भारत से पहले आधुनिकीकरण शुरू किया, क्योंकि उस वक्त भारत की सरकारें उतना नहीं कर पाईं, जितना करना चाहिए था।
यूरोप का रुख: पहले से बदला है
जब जयशंकर से पूछा गया कि क्या यूरोप अभी भी चीन के प्रति उदासीन है, तो उन्होंने कहा कि पिछले 10-15 सालों में यूरोप का नजरिया काफी बदल गया है। उन्होंने बताया, “15 साल पहले यूरोप का रुख बहुत अलग था। अब इसमें काफी बदलाव आया है।” लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि सारे यूरोपीय देश एक ही रास्ते पर नहीं चल रहे। कुछ देशों का रुख सख्त है, तो कुछ का नरम। इस दौरान साक्षात्कारकर्ता ने रूस का जिक्र किया और कहा कि 15 साल पहले रूस के साथ भी ऐसा ही था। जयशंकर ने हंसते हुए कहा, “आपने बिल्कुल सही कहा, मैं इससे इनकार नहीं करूंगा!” और वहां मौजूद लोग हंस पड़े।