संभल में शाही मस्जिद या हरिहर मंदिर? सरकारी दस्तावेजों में खुलासा, जानिए इतिहासकार की राय

उत्तर प्रदेश के संभल में स्थित शाही जामा मस्जिद और उसके आसपास का विवाद इस समय गरमाया हुआ है। 24 नवंबर को इस मस्जिद के सर्वे के दौरान हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें पथराव, आगजनी और फायरिंग हुई। इस हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई थी और बीस से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इस विवाद की जड़ शाही मस्जिद के निर्माण और इसके इतिहास से जुड़ी हुई है। हिंदू पक्ष का कहना है कि पहले यहां एक मंदिर हुआ करता था, जिसे बाद में मस्जिद में बदल दिया गया। इस पर हिंदू पक्ष ने चंदौसी कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसके बाद कोर्ट के आदेश पर मस्जिद का सर्वे हुआ।
सरकारी गजेटियर में क्या है लिखा?
मुरादाबाद के सरकारी गजेटियर में, जो हाल ही में 2024 में प्रकाशित हुआ, एक दिलचस्प दावा किया गया है। इसके मुताबिक, संभल में स्थित हरिहर मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान द्वारा किया गया था। इस गजेटियर में बताया गया है कि इस मंदिर का संबंध ऐतिहासिक रूप से भगवान विष्णु से था, और यह मंदिर संभल के पुराने शहर के मध्य में स्थित था, जिसे कोर्ट या किला भी कहा जाता था। गजेटियर के अनुसार, मंदिर के निर्माण का श्रेय पृथ्वीराज चौहान के बाद राजा जगत सिंह और राजा विक्रम सिंह के परपोते नाहर सिंह को भी जाता है।
इस गजेटियर में यह भी उल्लेख किया गया है कि मंदिर अब अस्तित्व में नहीं है और उसकी जगह एक मस्जिद बन गई है। गजेटियर के मुताबिक, मस्जिद का निर्माण पत्थर से किया गया था, जिसमें एक विशाल केंद्रीय गुंबद भी था। बाहरी दीवारें और प्रांगण की फर्श भी पत्थर से निर्मित थीं। 1966 के गजेटियर में भी इस बात का जिक्र था कि संभल में हरिहर मंदिर स्थित था।
इतिहासकार का क्या कहना है?
इतिहासकार अजय अनुपम, जो इस विषय पर गहन अध्ययन कर चुके हैं, उनका मानना है कि पुरानी किताबों और दस्तावेजों में यह बात दर्ज है कि पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में यहां हरिहर मंदिर का निर्माण हुआ था, और बाद में बाबर के शासन में इसे मस्जिद में बदल दिया गया। अजय अनुपम का कहना है कि इतिहास को कभी मिटाया नहीं जा सकता, और जो भी ऐतिहासिक साक्ष्य मिलते हैं, उनसे ही हम सही निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं।
उनके मुताबिक, उन्होंने अपनी शोध में भी कुछ ऐसे प्रमाण पाए हैं, जो यह बताते हैं कि शाही मस्जिद पहले हरिहर मंदिर हुआ करता था। हालांकि, अजय अनुपम का यह भी कहना है कि इस विवाद का हल कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा। उनका मानना है कि इस मुद्दे पर किसी भी प्रकार की हिंसा, विवाद या हंगामा नहीं होना चाहिए और सभी को कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए।
क्या कहता है ऐतिहासिक साक्ष्य?
इतिहासकार अजय अनुपम के मुताबिक, पुराने दस्तावेजों में जो उल्लेख हैं, वे इस बात की पुष्टि करते हैं कि शाही मस्जिद पहले हरिहर मंदिर था। उनके मुताबिक, यह विवाद केवल धार्मिक नहीं बल्कि ऐतिहासिक भी है और इसके निपटारे के लिए पूरी सतर्कता और समझदारी की जरूरत है।
यह मसला सीधे तौर पर हिन्दू-मुस्लिम भावनाओं से जुड़ा हुआ है, इसलिए अजय अनुपम ने कहा कि इस मामले में किसी भी प्रकार की हिंसा, विवाद या नफरत को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। कोर्ट का फैसला किसी भी पक्ष के लिए हो, सभी को उसे शांति और सम्मान के साथ स्वीकार करना चाहिए।
क्या है विवाद की जड़?
संभल के इस शाही जामा मस्जिद को लेकर विवाद वर्षों से चला आ रहा है, लेकिन हाल के दिनों में इस मसले ने ज्यादा तूल पकड़ा है। हिंदू पक्ष का कहना है कि यहां पहले एक भव्य मंदिर हुआ करता था, जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया और उसकी जगह मस्जिद बनवा दी। दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि शाही जामा मस्जिद एक मुस्लिम धार्मिक स्थल है, जो सालों से अस्तित्व में है। इस विवाद में अब कोर्ट का निर्णय सबसे अहम हो गया है, क्योंकि यही तय करेगा कि आखिरकार इस जगह का वास्तविक इतिहास क्या है और उसका भविष्य क्या होगा।
कोर्ट का फैसला: सबकी नजरें उस पर
वर्तमान में इस विवाद का हल कोर्ट के फैसले पर निर्भर करता है। फिलहाल मामले की जांच चल रही है और विभिन्न पक्षों द्वारा इस पर दायर की गई याचिकाओं को लेकर न्यायालय में सुनवाई जारी है। हालांकि, इस मुद्दे का समाधान किसी भी प्रकार की हिंसा, विवाद या धार्मिक असहिष्णुता से नहीं होना चाहिए, जैसा कि इतिहासकार अजय अनुपम ने कहा है।
उन्होंने सभी से अपील की है कि इस मामले में धैर्य बनाए रखें और कोर्ट के फैसले का सम्मान करें, ताकि शांति बनी रहे। उनका कहना है कि अगर यह मामला शांतिपूर्ण तरीके से हल होता है तो यह एक उदाहरण बन सकता है कि कैसे धार्मिक और ऐतिहासिक विवादों को समझदारी और सहमति से सुलझाया जा सकता है।
संभल का विवाद: एक लंबी कहानी
यह विवाद न सिर्फ संभल या उत्तर प्रदेश तक सीमित है, बल्कि यह पूरे देश में एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बन गया है। ऐतिहासिक और धार्मिक तथ्यों के बीच अंतर और उनका सही निर्धारण बेहद जरूरी है, ताकि भविष्य में ऐसे विवादों को सुलझाने में आसानी हो। अब यह देखना बाकी है कि कोर्ट इस मामले में क्या फैसला करती है, क्योंकि इससे न सिर्फ संभल बल्कि पूरे देश में धार्मिक सौहार्द और एकता पर असर पड़ेगा।

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