देहरादून: धरती पर कई रहस्यमयी लिंग और ज्योतिर्लिंग विद्यमान हैं, जो सिद्ध होने के साथ ही चमत्कारिक भी हैं. ऐसा ही एक सिद्ध स्थान उत्तराखंड में भी हैं. राजधानी देहरादून में एक ऐसा मंदिर है जिसके बारे में मान्यता है कि यहां आज भी अश्वथामा आते हैं, जिन्हें चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है.
राजधानी देहरादून स्थित टपकेश्वर मंदिर को पौराणिक मंदिरों में से एक माना जाता है. मान्यता है की यहां आज भी अश्वथामा आते हैं, जिन्हें चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है. गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वथामा जिसे भगवान शिव ने अमर होने का वरदान दिया था.
मान्यता है की अश्वथामा को बाल्यकाल में जब मां का दूध पीने की इच्छा हुई तो भगवान् शिव ने इस गुफा को थान का रूप दिया जिसमें से सदियों तक दूध टपकता रहा. लेकिन अब इस गुफा से दूध तो नहीं टपकता लेकिन गुफा से जल जरूर टपकता है, जिससे भगवान् शिव का अभिषेक होता है.
पौराणिक टपकेश्वर मंदिर को गुरु द्रोण की तपस्थली और पांडवों की प्रशिक्षण स्थली माना जाता है. ये जगह दूधेश्वर के नाम से भी जानी जाती है. पौराणिक मान्यता है कि मंदिर में ऋषि द्रोण के पुत्र अश्वथामा का जन्म हुआ था. मां कृपी के पुत्र को दुग्धपान करने में असमर्थ होने से बालक अश्वथामा ने आम बच्चों की तरह दूध पीने की जिद्द पकड़ ली. अश्वथामा ने पिता द्रोण से मां का दूध उपलब्ध करने की प्रार्थना की. द्रोण राजा द्रुपद के पास गए और उनसे गाय की मांग की. लेकिन राजा ने इंकार करते हुए भगवान शिव से मांगने को कहा.
1
थकहार कर द्रोण ने बालक को समझाया कि भगवान शिव ही तुम्हारे लिए दूध का इंतजाम कर सकते हैं. जिसके बाद अश्वथामा ने कड़ी तपस्या की. तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उनके निवास वाली गुफा के अंदरूनी हिस्से को थन के आकार में बदल दिया. जिनमें से दूध की धारा निकलने लगी और बालक अश्वथामा को दूध प्राप्त हुआ. दूध की धारा कलयुग के शुरुआत तक शिवलिंग पर गिरती रही. समय के साथ दूध का दुरूपयोग होने पर गुफा में दूध की जगह पानी टपकने लगा.
आज भी ऊपर से गिरने वाला जल ठीक शिवलिंग के ऊपर गिरता है. इस तरह से दूधेश्वर मंदिर टपकेश्वर मंदिर में बदल गया. मंदिर के पुजारी के अनुसार इस मंदिर और गुफा को 6500 वर्ष हो चुके हैं. माना जाता है कि यहां सच्चे मन से उपासना करने पर हर मनोकामना पूर्ण होती है.