शून्य आदी भी है और अंत भी यानि बना भी देता है और बिगाड़ भी देता है. ऐसा ही कुछ सिद्धांत लेकर भारतीय बॉक्स ऑफ़िस के चार्मिंग जादूगर शाहरुख़ खान अपनी फिल्म ज़ीरो के साथ आए हैं.
ज़ीरो की कहानी है बउआ सिंह (शाहरुख खान) की, जो 38 साल का है, मेरठ में रहता है और साढ़े चार फुट का है. घर में पिता हैं, जिन्हें बउआ से सिर्फ शिकायत रहती है और एक मां है, जिन्हें बउआ की कोई बात गलत नहीं लगती. फिल्म की शुरुआत से ही निर्देशक आनंद एल राय ने इस बात को दर्शकों के दिमाग में बिठाने की कोशिश की है कि बउआ घर से अमीर है, उद्दंड है लेकिन कहीं ना कहीं दिल का अच्छा है. बउआ के अच्छे- बुरे सभी कर्मों का साथी है गुड्डु (मोहम्मद ज़ीशान अयूब)..
बउआ शादी के लिए बेताब है, जब उसकी जिंदगी में आफिया (अनुष्का शर्मा) दस्तक देती है. जो कि एक बड़ी वैज्ञानिक है और उन्होंने मंगल ग्रह पर पानी की खोज़ की है, लेकिन cerebral palsy नामक बीमारी से ग्रसित है. साथ ही निर्देशक दर्शकों की मुलाकात सुपरस्टार बबीता कुमारी (कैटरीना कैफ) से भी कराते हैं, जिसके पीछे बउआ पागल है लेकिन सिर्फ एक फैन की तरह.
फिल्म की कहानी
बउआ सिंह एक ऐसा किरदार है, जिसे आप नफरत भरा प्यार करेंगे. ना उसकी बातें, हरकतें आपको अच्छी लगेगी. ना आप उसे खुद से दूर कर पाएंगे और ऐसा ही कुछ होता है आफिया के साथ। बउआ और आफिया दोनों अपने अधूरेपन के साथ एक होने जा रहे होते हैं। लेकिन उसी वक्त कहानी में ट्विस्ट आता है। सुपरस्टार बबीता कुमारी से बउआ सिंह का अंजाने में आमना सामना होता है और नशे में धुत्त बबीता बउआ के होठों को चूम लेती है।जहां बउआ और आफिया शारीरिक तौर पर अधूरेपन से गुजर रहे होते हैं, वहीं बबीता कुमारी मानसिक रूप से अधूरी हैं। किस तरह तीनों किरदार अपने अधूरेपन या ज़ीरो(पन) से बिना आहत हुए अपना रास्ता चुनते हैं, यह कहानी है ज़ीरो की।
फिल्म में अभिनय और डॉयलोग्स प्रभावशाली हैं। लेकिन फिल्म की पटकथा थोड़ी कमजोर है, जो खासकर फिल्म के सेकेंड हॉफ को सुस्त बनाती है और फर्स्ट हॉफ से बने इमोशनल कनेक्ट को भी डगमगा देती है। मेरठ से Mars जाते जाते फिल्म पटरी से उतर जाती है लेकिन अभिनय के दम पर सितारे आपको कुर्सी से बांधे रखते हैं।
अभिनय
अभिनय की बात करें तो शाहरुख खान, कैटरीना और अनुष्का को पूरे अंक मिलने चाहिए. ढीठ, खुदगर्ज लेकिन मजेदार और सच्चे बउआ सिंह के किरदार में शाहरुख ने शानदार काम किया है। बउआ सिंह ऐसा किरदार है जो लंबे समय तक आपके साथ रहेगा। दृढ़, दमदार और बुद्धिमान वैज्ञानिक के किरदार में अनुष्का शर्मा ने भी हैरान किया है। पूरी फिल्म में cerebral palsy से ग्रसित आफिया को दिखाने में वह सफल रही हैं। वहीं, बबीता कुमारी के किरदार में कैटरीना ने अपने करियर का बेस्ट दिया है।
सर्पोटिंग कास्ट
फिल्म के बाकी स्टारकास्ट मोहम्मद जीशान अयूब, तिग्मांशु धूलिया, शीबा चड्डा, बजेन्द्र काला,अभय देओल, आर माधवन ने भी अच्छा काम किया है. हालांकि, फिल्म में इन किरदारों को ज्यादा निखरने का मौका ही नहीं दिया गया। दिलचस्प बात यह भी है कि फिल्म में श्रीदेवी का कुछ सेकेंड का कैमियो है जो कि यादगार रहेगा.
संगीत
फिल्म के गाने थियेटर से निकलने के बाद भी कुछ समय तक आपके कानों में गूंजते रहेंगे। मेरे नाम तू.. में जहां शाहरुख की मोहब्बत दिखती है वहीं, इशकबाजी में शाहरुख- सलमान की जोड़ी इंटरटेन कर जाती है. फिल्म के संगीत को ऐवरेज से ऊपर मान सकते हैं.
तीन स्टार
शाहरुख खान, कैटरीना कैफ और अनुष्का के दमदार अभिनय को छोड़ दिया जाए तो आनंद एल राय की जीरो कहानी के मामले में थोड़ी कमजोर है और कुछ लंबी भी. राजसत्ता एक्सप्रेस इस फिल्म को तीन स्टार देती है.