भारत के विधि आयोग यानी लॉ कमीशन ने देशद्रोह कानून पर अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देशद्रोह से निपटने वाली आईपीसी की धारा 124A को इसके दुरुपयोग से रोकने के लिए कुछ सुरक्षा उपायों के साथ बरकरार रखा जाना चाहिए।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि इसमें कुछ जरुरी संशोधन की जरूरत है ताकि प्रावधान के उपयोग के संबंध में अधिक पारदर्शिता और स्पष्टता लाई जा सके और धारा 124A के गलत उपयोग संबंधी विचार पर ध्यान देते हुए रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई कि केंद्र द्वारा हो रहे दुरुपयोगों पर रोक लगाते हुए आदर्श और उचित दिशानिर्देश जारी करने की जरूरत है।
अभी- अभी बने कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को लिखे अपने कवरिंग लेटर में 22वें लॉ कमीशन के अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस रितु राज अवस्थी ने कुछ सुझाव भी दिए हैं।
इस रिपोर्ट में कहा गया कि IPC की धारा 124A जैसे प्रावधान की गैरमौजूदगी में, सरकार के खिलाफ हिंसा भड़काने वाली किसी भी व्यक्ति पर निश्चित रूप से विशेष लॉ और आतंकवाद विरोधी लॉ के तहत मुकदमा चलाया जाएगा। जिसमें अभियुक्तों से निपटने के लिए कहीं अधिक कड़े प्रावधान हैं। इसमें यह भी सुझाव दिया गया है की न्यूनतम 3 साल की सजा को बढ़ा कर 7 साल किया जाए। साथ हीं 124A में दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास की सजा मिले।
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि आईपीसी की धारा 124A को केवल इस आधार पर ख़त्म करना कि कुछ देशों ने ऐसा किया है ये ठीक नहीं है क्योंकि ऐसा करना भारत में मौजूद जमीनी हकीकत से आंखें मूंद लेने की तरह होगा। यहां की स्थिति अन्य देशों से भिन्न है, यहां अलग तरह की चैलेंजेज हैं। तो इसे यहां के तौर तरीकों से निपटना होगा, ना की किसी दुसरे देश से नक़ल कर के।
कानून ख़त्म करने से देश विरोधी ताकतों को बल मिलेगा और वो इस कानून के निरस्त होने का गलत फाएदा उठाएंगे। आयोग ने यह भी कहा कि औपनिवेशिक विरासत होने के आधार पर राजद्रोह को निरस्त करना उचित नहीं है। इसे निरस्त करने से देश की अखंड़ता और सुरक्षा पर प्रभाव पड़ सकता है, जो भारत के भविष्य के लिए ठीक नहीं होगा।
मोदी सरकार देशद्रोह कानून में संशोधन की तैयारी कर रही है। इसे लेकर संसद के मानसून सत्र में एक प्रस्ताव लाया जा सकता है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में बीती एक मई को भी इसके बारे में जानकारी दी थी। सरकार का कहना है कि 124A की समीक्षा की प्रक्रिया आखिरी चरण में है। बता दें कि, कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल मई के महीने में देशद्रोह कानून को स्थगित कर दिया था। तब राज्य सरकारों से कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार की ओर से इस कानून को लेकर जांच पूरी होने तक इस प्रावधान के तहत सभी लंबित कार्यवाही में जांच जारी न रखें। जो केस लंबित हैं, उन पर यथास्थिति बनाई जाए।