लखनऊ : उत्तर प्रदेश में चुनाव की आहट से पहले ही राजनितिक पार्टी मुस्लिम वोट बैंक को साधने में जुट गए हैं. प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक को लेकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस आमने सामने है. लेकिन कांग्रेस अब अलग से समाजवादी के मुस्लिम वोटबैंक में सेंधमारी की कोशिश कर रही है. गाज़ियाबाद की ताजा घटना को लेकर राहुल गांधी के ट्वीट ने साफ कर दिया है कि यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर मुस्लिम वोटबैंक में सेंधमारी को लेकर कांग्रेस कोई कसर नही छोड़ने वाली है. गाज़ियाबाद वाले घटना को लेकर कांग्रेस की सक्रियता बता रही है कि पार्टी आने वाले समय में समाजवादी के मुस्लिम वोट बैंक को साधने की कोशिश जरूर करेगी.
उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ही समाजवादी पार्टी ने ज़िला स्तर से ही पार्टी में बदलाव शुरू कर दिए हैं. समाजवादी पार्टी ने पंचायत चुनाव में भी यादव उम्मीदवारों के बाद सबसे ज़्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों को ही मैदान में उतारे थे. समाजवादी पार्टी बताने की कोशिश कर रही है कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटबैंक पर उनका ही अधिकार है.
इससे अलग कांग्रेस ने भी विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस ली है. मुस्लिम वोट बैंक पर कब्ज़ा करने के लिए कांग्रेस एक साथ कई रणनीतियों पर काम कर रही है. बता दें कि उत्तर प्रदेश में 20 फीसदी के करीब मुस्लिम मतदाता हैं, जो एक दौर में कांग्रेस का मजबूत वोटबैंक हुआ करते थे, लेकिन 1989 के बाद ये वोटबैंक कांग्रेस से छिटकर सपा और बसपा के करीब चला गया है. मुस्लिम के कांग्रेस के अलग होने के बाद से पार्टी सत्ता में नहीं आ सकी है. ऐसे में कांग्रेस सूबे में अपने राजनीतिक जड़ें जमाने के लिए मुस्लिम समुदाय को साधने की कवायद में जुट गई है.
कांग्रेस का यूपी में पूरा दारोमदार मुस्लिम वोट पर टिका हुआ है. यूपी में मुस्लिम मतदाता अभी तक अलग-अलग कारणों से अलग-अलग पार्टियों को वोट करते आ रहे हैं. माना जा रहा है कि इस बार के चुनाव में मुस्लिम सूबे में उसी पार्टी को वोटिंग करेंगे जो बीजेपी को हराती हुई नजर आएगी. इसलिए कांग्रेस सूबे में उलेमाओं और मुस्लिम समुदाय के बीच सक्रिय होकर यह बताने की कवायद में जुट गई है तो उसे आपकी चिंता है. इसीलिए कांग्रेस एक के बाद एक कोशिश कर रही है, जिसके लिए अस्सी के दशक के उदाहारण भी दिए जा रहे हैं.
प्रदेश के मुस्लिम नेताओं का कहना है कि मुस्लिम समुदाय ने कांग्रेस को सबक सीखने के लिए नब्बे के दशक साथ छोड़ा, लेकिन इसका खामियाजा कांग्रेस के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय को भी उठाना पड़ा है. कांग्रेस के कमजोर होने के साथ बीजेपी को संजीवनी मिली. कांग्रेस मजबूत रहती है तो बीजेपी के लिए चुनाव को सांप्रदायिक बनाना मुश्किल होता है.