राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना और उनके नवनिर्वाचित पीएम महिंदा राजपक्षे को उस वक्त करारा झटका लगा, जब श्रीलंका की सुप्रीम कोर्ट ने संसद भंग करने के फैसले को पलट दिया. दरअसल, सोमवार को श्रीलंका की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों और चुनाव आयोग के एक सदस्य ने मैत्रीपाला के संसद भंग करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई की और इस फैसले को पलट दिया.
स्पीकर ने नहीं माना था फैसला
वहीं इससे पहले सिरिसेना ने रनिल विक्रमसिंघे को पीएम पद से बर्खास्त करके महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त किया था. इसके बाद विक्रमसिंघे ने संसद में बहुमत साबित करने का दावा किया था. साथ ही संसद के स्पीकर ने विक्रमसिंघे को बर्खास्त करने के राष्ट्रपति मैत्रीपाला के फैसले को मानने से इंकार कर दिया था. वहीं सदन में बहुमत साबित करने के लिए विक्रमसिंघे को मौका देने के लिए भी मान गए थे, जिसके बाद राष्ट्रपति ने संसद को ही भंग कर दिया था.
इसलिए किया था संसद भंग करने का फैसला
संसद का कार्यकाल समाप्त होने से लगभग 20 महीने पहले ही राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने संसद को भंग करने का फैसला किया था. साथ ही 9 नवंबर को संसद भंग करने का फैसला लेते हुए 5 जनवरी 2019 को मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की थी. वहीं राष्ट्रपति मैत्रीपाला ने रानिल विक्रमसिंघे को पीएम पद से 26 अक्टूबर को बर्खास्त किया और उनकी जगह पर 72 साल के महिंदा राजपक्षे को पीएम नियुक्त किया था. ऐसे में राजपक्षे को 225 सदस्यों वाले सदन में बहुमत साबित करना था और उन्हें कम से कम 113 सासंदों के समर्थन की जरूरत थी, लेकिन सिरिसेना को जिस वक्त लगा कि राजपक्षे के पास पीएम पद पर बने रहने के लिए सदन में पर्याप्त संख्या बल नहीं है.