ओशो तनाव मुक्ति शिविर का सफल समापन

सोनीपत। 29 सितंबर 2024 को दीपालपुर गांव के श्री रजनीश ध्यान मंदिर में ‘तनाव मुक्ति साधना शिविर’ का सफलतापूर्वक समापन हुआ, जिसमें पूरे देश के विभिन्न प्रांतों से करीब 70 मित्र शामिल हुए। स्वामी शैलेंद्र सरस्वती ने कहा, “तनाव का मुख्य कारण बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर है। इसलिए बाहर से दुख मिटाने के उपाय सफल नहीं हो सकते। हमें स्वयं के भीतर से रोग का उपचार करना होगा। लक्षण केवल बाहर के संकेत हैं। जब हम अपने मन में प्रवेश कर गए कीटाणु को समाप्त कर देंगे, तो लक्षण खुद-ब-खुद खत्म हो जाएंगे। बुखार का इलाज नहीं, बुखार की वजह को समाप्त करना होगा।”

इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. स्वामी शैलेंद्र जी और गुरुमां अमृत प्रिया जी ने किया। सहयोगी आचार्य के रूप में स्वामी मस्तो बाबा, मां मोक्ष संगीता, और मां आस्था जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शिविर में मुख्य रूप से भगवान बुद्ध द्वारा बताए गए चार आर्य सत्य और दुख निरोध के अष्टांगिक मार्ग को समझने पर विस्तृत चर्चा हुई। प्रतिभागियों ने अपने मन में टेंशन के कारण और उनके निवारण के व्यावहारिक मार्गदर्शन पर विचार किया। सभी ने अपने तनावों, कठिनाइयों, और मानसिक दुखों की घटनाएं साझा कीं, जिनका विश्लेषण स्वामी जी और गुरु मां जी ने किया।

स्वामी मस्तो बाबा ने ध्यान के माध्यम से आत्म-रूपांतरण की बात करते हुए कहा कि समाधि प्राप्ति में ही जिंदगी की समस्याओं का समाधान है। उन्होंने बताया कि हमारे मन में विचारों और भावनाओं का शोर होता है, लेकिन जब हम ध्यान में मौन होकर ईश्वर का स्वर सुनते हैं, तो शांति की अनुभूति होती है। परमातमा की सूक्ष्म आवाज, अनाहत नाद है, ओंकार का संगीत है। उसमें तल्लीन होने से आंतरिक आनंद की प्रतीति होती है।

शिविर में 26 सितंबर को नए संन्यास दिवस का उत्सव मनाया गया, जब ओशो ने 1970 में भगवान श्रीकृष्ण के जीवन और दर्शन की व्याख्या करते हुए संन्यास दीक्षा देना शुरू किया था। स्वामी शैलेंद्र सरस्वती ने इस विषय पर बीएसआर (भगवान श्री रजनीश) चैनल के लिए दोपहर 12.15 से 2.00 बजे तक साक्षात्कार दिया, जिसमें नए संन्यास की आवश्यकता और पुरानी प्रणाली में सुधार के बारे में प्रकाश डाला। प्रश्नकर्ता थे बीएसआर मीडिया के स्वामी राघव सत्यार्थी जी।

फीडबैक सत्र में सभी शिविरार्थियों ने अपनी-अपनी आत्मिक प्रगति का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि ओशो के प्रवचनों को सुनकर उनके जीवन के प्रति समझ, प्रज्ञा और विवेक में विकास हुआ है। सभी ने कहा कि वे घर जाकर ओशो फेगरेंस के ऑनलाइन कार्यक्रमों में नियमित रूप से शामिल होकर अपनी जिंदगी में निखार लाते रहेंगे। मां मोक्ष संगीता और मां आस्था जी ने लगनपूर्वक साधना करने के लिए सभी को धन्यवाद दिया। मां अमृत प्रिया जी ने विदाई सत्र में सभी को प्रसाद रूपी मिष्ठान्न वितरित किए।

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