सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को करोड़ों रुपये के यस बैंक-डीएचएफएल लोन घोटाले में डीएचएफएल के पूर्व प्रमोटरों कपिल वधावन और उनके भाई धीरज वधावन को दी गई जमानत रद्द कर दी है. सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति एससी शर्मा की पीठ ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट ने 34,615 करोड़ रुपये के बैंक धोखाधड़ी मामले में आरोपी भाइयों को जमानत देने में बहुत गलती की है.
न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने कहा कि हमें इस बात में कोई झिझक नहीं है कि आरोपपत्र दाखिल होने और उचित समय पर संज्ञान लेने के बाद प्रतिवादी वैधानिक जमानत का अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते थे. हाईकोर्ट और निचली कोर्ट ने फैसला सुनाने में बहुत बड़ी गलती की है. पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट भाइयों की नियमित जमानत पर नए सिरे से सुनवाई करेगी और उसके बाद अपील की अनुमति दी जाएगी. आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत यदि जांच एजेंसी 60 या 90 दिनों में मामले में जांच के समापन के बाद आरोप पत्र दाखिल करने में विफल रहती है, तो एक आरोपी वैधानिक जमानत देने का हकदार है.
जानकारी के मुताबिक, वधावन बंधुओं के मामले में सीबीआई ने कानून के मुताबिक पहली एफआईआर दर्ज करने के 88वें दिन चार्जशीट दाखिल की थी, हालांकि ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को डिफॉल्ट जमानत दे दी और दिसंबर में दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश पर रोक लगा दी. वधावन बंधुओं को पिछले साल 19 जुलाई को करोड़ों रुपये के घोटाले के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया था कि वह मामले के गुण-दोष पर ध्यान नहीं देता है. मामले में 15 अक्टूबर 2022 को आरोप पत्र दाखिल किया गया और फिर इसका संज्ञान लिया गया. मामले में एफआईआर यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की शिकायत पर दर्ज की गई थी.
पिछले साल अगस्त में वधावन बंधुओं की गिरफ्तारी के एक महीने बाद एक मीडिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि कैसे वे मुंबई के बाहरी इलाके में स्थित तलोजा सेंट्रल जेल में सलाखों के पीछे एक शानदार जीवन जी रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि कैसे दोनों भाई मुंबई के सरकारी अस्पतालों में मेडिकल चेकअप की आड़ में सैर-सपाटे का आनंद ले रहे थे. हालांकि मामला खुलने के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने तलोजा सेंट्रल जेल के अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी थी.