चुनावी जीत के बाद भी दिल्ली पर हुकूमत किसकी, सुप्रीम कोर्ट का आया फैसला

नई दिल्ली| दिल्ली जो कि एक केंद्र प्रशासित राज्य है, सालों से इसी बात को लेकर दिल्ली सरकार और केंद्र
सरकार में मनमुटाव चलता आ रहा है कि आखिर दिल्ली में असल हुकूमत किसकी होगी, या
प्रशासनिक और नियुक्ति के अधिकार किसके पास संरक्षित रहेंगे|

दिल्ली को लेकर घटना चक्र

अरविंद केजरीवाल दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री नहीं है, जिन्होंने इस बात पर कानूनी लड़ाई लड़ने का
फैसला लिया है| क्योंकि यह विवाद बहुत पुराना है और इसी विवाद के चलते वर्ष 1955 में ब्रह्म
प्रकाश जी को अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी देना पड़ा था, जिसके चलते वर्ष 1956 में दिल्ली
से राज्य स्तर का दर्जा भी छिन गया था|

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

आज काफी लंबे समय की कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है कि
लोकतांत्रिक रूप से हुए चुनावी जीत के बाद भी असली हुकूमत किसकी होगी| जस्टिस ने अपने
फैसले में कहा है कि प्रशासनिक मामलों में जुड़े सारे अधिकार दिल्ली सरकार के पास रहेंगे| जबकि
कानून, पुलिस और जमीन से जुड़े सारे अधिकार केंद्र सरकार के पास संरक्षित रहेंगे| अपने फैसले में
यह भी कहा कि के सरकार में निदेशक स्तर की नियुक्ति दिल्ली सरकार कर सकती है| वहीं दूसरी
बेंच का फैसला भी साफ है जिसमें जस्टिस भूषण ने कहा है कि दिल्ली सरकार के पास सारी
कार्यकारी शक्तियां नहीं है अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग के अधिकार उपराज्यपाल के पास रहेंगे|
दोनों बैंचों में मतभेद होने के कारण असहमति वाले मुद्दों को तीन जजों की बेंच के पास भेजा
जाएगा|

अब क्या किसके पास संरक्षित रहेगा

1. ग्रेड 3 और ग्रेड 4 के कर्मचारियों का ट्रांसफर पोस्टिंग के अधिकार दिल्ली सरकार के पास होंगे|
2. एंटी करप्शन ब्रांच केंद्र सरकार के पास होगा|
3. जांच कमिशन भी केंद्र सरकार के पास रहेगा|

4. बिजली बोर्ड के निदेशक और कर्मियों की ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा|
5. जमीन का रेट दिल्ली सरकार तय करेगी|
6. किसी भी मतभेद की स्थिति में उपराज्यपाल का मत माना जाएगा|

समय के साथ कानून में बदलाव की आवश्यकता

अभी देश और राज्य की मौजूदा स्थितियों पर गौर किया जाए तो कानून में बदलाव की जरूरत यहां
पढ़ती है कि अगर किसी मुद्दे पर पुलिस और प्रशासन की व्यवस्था में तनातनी का माहौल बनता
है तो दिल्ली के मुख्यमंत्री सिर्फ कार्यवाही की मांग कर सकते हैं| लेकिन दिल्ली पुलिस को राज्य
सरकार के अधीन तभी किया जा सकता है, जब सांसद में इससे संबंधित प्रावधान पारित हो| शुरू
से ही मुख्यमंत्रियों की इस मांग को तक पूर्ण बताया जाता रहा है और साथ भी यह माना जाता रहा
है कि 1.7 करोड़ वाली आबादी के क्षेत्र को बिना पुलिस व्यवस्था के संभाल पाना बहुत मुश्किल है|

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