सुप्रीम कोर्ट ने ताहिर हुसैन की याचिका पर दिया कड़ा बयान, कहा- ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने से रोक देना चाहिए

दिल्ली में हुए 2020 के दंगों के मुख्य आरोपी ताहिर हुसैन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए एक तीखी टिप्पणी की है। ताहिर हुसैन ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत की मांग की थी, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज करने की दिशा में बड़ा बयान दिया। इस मामले में, कोर्ट ने कहा कि ऐसे आरोपियों पर चुनाव लड़ने की पाबंदी लगनी चाहिए। आइए, विस्तार से जानते हैं इस पूरे मामले के बारे में।

ताहिर हुसैन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

ताहिर हुसैन ने अपनी याचिका में यह मांग की थी कि उन्हें दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचार करने की अनुमति दी जाए। ताहिर हुसैन, जो दिल्ली दंगों के प्रमुख आरोपियों में से एक हैं, ने AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) से मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार के तौर पर नामांकन किया है। हालांकि, इसके लिए उन्हें अंतरिम जमानत की जरूरत थी।

अभी हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने ताहिर हुसैन को अपने नामांकन दाखिल करने के लिए पैरोल दी थी। अब, ताहिर हुसैन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उसने चुनाव प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत की मांग की थी। इस पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पंकज मिथल ने कड़ी टिप्पणी की।

‘जेल में बैठकर चुनाव लड़ना आसान है’

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पंकज मिथल ने ताहिर हुसैन की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि, “जेल में बैठकर चुनाव जीतना आसान है।” उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए। उनका मानना था कि इस तरह के लोग चुनावों में भाग लेने के योग्य नहीं होते। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि ऐसे व्यक्तियों पर पाबंदी होनी चाहिए।

इसके बाद, कोर्ट ने यह भी कहा कि ताहिर हुसैन जैसे लोगों को चुनाव लड़ने से डिबार किया जाना चाहिए। जस्टिस मिथल ने कहा कि इस प्रकार के मामलों में पाबंदियां लगानी चाहिए ताकि ऐसे लोग चुनाव में भाग न ले सकें। उन्होंने यह टिप्पणी ऐसे मामलों के संदर्भ में की, जिनमें आरोपी जेल में बंद होते हैं और चुनावी प्रचार करने की अनुमति मांगते हैं।

ताहिर हुसैन का इतिहास और चुनावी पृष्ठभूमि

ताहिर हुसैन 2020 में दिल्ली में हुए दंगों के प्रमुख आरोपियों में से एक हैं। उन्हें आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या का भी आरोपी ठहराया गया था। इस घटना ने देशभर में हलचल मचाई थी। हुसैन उस वक्त आम आदमी पार्टी (AAP) के पार्षद थे, लेकिन दंगों के बाद पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया था। इसके बाद, ताहिर हुसैन पर गंभीर आरोप लगे, और दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ कई मामले दर्ज किए।

हालांकि, इस बार ताहिर हुसैन को AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) ने मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार घोषित किया है। इस क्षेत्र में चुनाव प्रचार के लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अंतरिम जमानत की याचिका दायर की थी, जिस पर अब अदालत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।

‘इन लोगों पर चुनाव लड़ने की पाबंदी होनी चाहिए’

सुप्रीम कोर्ट में ताहिर हुसैन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने याचिका पर अपनी बात रखी और कहा कि यह एक वास्तविक मामला है। उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि इस पर जल्द सुनवाई की जाए और चुनाव प्रचार की अनुमति दी जाए, क्योंकि चुनाव आयोग ने उनका नामांकन स्वीकार कर लिया है।

लेकिन, जस्टिस पंकज मिथल ने इस पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसे व्यक्तियों को चुनावी प्रक्रिया से बाहर किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि “इन सभी लोगों पर पाबंदी होनी चाहिए। ऐसे व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोक देना चाहिए।” सुप्रीम कोर्ट के इस बयान ने ताहिर हुसैन की याचिका के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 21 जनवरी की तारीख तय की

सुप्रीम कोर्ट ने ताहिर हुसैन की याचिका पर सुनवाई के बाद इसे कल (मंगलवार, 21 जनवरी) के लिए स्थगित कर दिया। अब कोर्ट इस मामले में फिर से सुनवाई करेगा और देखेगा कि क्या ताहिर हुसैन को चुनाव प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत दी जाती है या नहीं।

क्या चुनावी राजनीति में जेल में बैठे आरोपियों को प्रचार करने की अनुमति मिलनी चाहिए?

यह सवाल अब और भी महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर एक बड़ा संदेश दिया है कि जिनके खिलाफ गंभीर आरोप हैं, उन्हें चुनावी प्रक्रिया से बाहर रखा जाना चाहिए। जेल में बैठकर चुनाव प्रचार करना और चुनाव में भाग लेना, यह राजनीति और न्याय व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती पेश करता है। इस पर अब और अधिक बहस की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और चुनावी राजनीति

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी साफ तौर पर यह संकेत देती है कि अदालत चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए गंभीर है। राजनीतिक दलों को ऐसे उम्मीदवारों पर ध्यान देना चाहिए जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं, क्योंकि इससे लोकतंत्र की पवित्रता पर असर पड़ सकता है।

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