भारत में बुजुर्गों की बढ़ती आबादी और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए एक अलग मंत्रालय की आवश्यकता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को आदेश देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने याचिकाकर्ता को सुझाव दिया कि वह सरकार के सामने इस मुद्दे को उठाएं। आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट ने इस पर क्या कहा और क्या थी याचिका में उठाई गई अहम मांगें।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों नहीं दिया मंत्रालय बनाने का आदेश?
सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक अलग मंत्रालय बनाने की मांग को लेकर एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई थी। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से अनुरोध किया था कि भारत में बढ़ती हुई बुजुर्गों की संख्या को देखते हुए केंद्र सरकार को एक समर्पित मंत्रालय स्थापित करने का निर्देश दिया जाए, जो केवल बुजुर्गों से संबंधित मामलों पर ध्यान दे।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि वह सीधे तौर पर सरकार को ऐसा मंत्रालय स्थापित करने का निर्देश नहीं दे सकती। जस्टिस पीएस नरसिम्हा की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह स्पष्ट किया कि अदालत खुद से किसी मंत्रालय की स्थापना के लिए आदेश नहीं दे सकती, क्योंकि यह सरकार का कार्य है। अदालत ने याचिकाकर्ता से यह कहा कि वह अपनी मांग को सरकार के सामने पेश करें और संबंधित विभाग को इस मुद्दे पर विचार करने के लिए पत्र लिखें।
याचिकाकर्ता ने क्या कहा था?
याचिकाकर्ता, वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन और राहुल श्याम भंडारी ने कोर्ट में यह तर्क दिया कि भारत में बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और इसलिए उन्हें एक अलग मंत्रालय की आवश्यकता है। उनका कहना था कि भारत दुनिया में सबसे बड़ी बुजुर्ग आबादी वाले देशों में से एक है। 2022 में 60 साल और उससे अधिक उम्र के नागरिकों की संख्या 14.9 करोड़ थी, जो कुल जनसंख्या का 10.5% है। भविष्य में यह संख्या और बढ़ने वाली है। 2050 तक यह आंकड़ा बढ़कर 34.7 करोड़ (20.8%) तक पहुंच सकता है।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इतनी बड़ी संख्या को देखते हुए उन्हें अलग मंत्रालय की आवश्यकता है, जो उनके विशेष मुद्दों पर काम कर सके और उनकी समस्याओं को गंभीरता से सुलझा सके। याचिका में यह भी कहा गया कि जैसे महिलाओं और बच्चों के लिए 2006 में अलग मंत्रालय बनाया गया था, ठीक वैसे ही बुजुर्गों के लिए भी एक समर्पित मंत्रालय होना चाहिए।
मौजूदा स्थिति क्या है?
अभी इस समय, वरिष्ठ नागरिकों से संबंधित सभी मामलों को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत रखा गया है। हालांकि, इस मंत्रालय के तहत कई अन्य संवेदनशील मुद्दे भी आते हैं, जैसे नशा पीड़ितों, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और भिखारियों के मामलों का समाधान। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि बुजुर्गों के मामले को इस श्रेणी में रखना उचित नहीं है, क्योंकि यह उन्हें सम्मानजनक और गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार से वंचित करता है। उन्होंने मांग की कि बुजुर्गों के मामलों को एक अलग मंत्रालय में रखा जाए, ताकि उनके अधिकारों और जरूरतों पर अधिक ध्यान दिया जा सके।
अदालत ने क्यों नहीं हस्तक्षेप किया?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि यह न्यायिक क्षेत्र का काम नहीं है। न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने स्पष्ट किया कि कोर्ट को ऐसे मामलों में आदेश देने का अधिकार नहीं है, जहां सरकार का नीति निर्माण करना होता है। इसके बजाय, अदालत ने याचिकाकर्ता से यह कहा कि वह सरकार के सामने अपनी मांग को रख सकते हैं। याचिकाकर्ता को सरकार से सीधे संपर्क करने और इस पर विचार करने के लिए एक रिप्रेजेंटेशन (पत्र) देने की सलाह दी गई है।
बुजुर्गों के लिए अलग मंत्रालय की आवश्यकता क्यों?
भारत में बुजुर्गों की संख्या लगातार बढ़ रही है, और यह देश के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया है। भारत में 60 साल और उससे अधिक उम्र के नागरिकों की संख्या 2022 तक 14.9 करोड़ तक पहुंच चुकी थी। यह संख्या अगले कुछ दशकों में और बढ़ने वाली है। ऐसे में बुजुर्गों की बढ़ती संख्या और उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए एक अलग मंत्रालय की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
अगर एक मंत्रालय होगा तो बुजुर्गों के लिए विशेष योजनाएं बनाई जा सकेंगी, उनके अधिकारों की रक्षा हो सकेगी और उनकी समस्याओं का समाधान अधिक प्रभावी तरीके से किया जा सकेगा।
क्या सरकार इस दिशा में कदम उठाएगी?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है, लेकिन याचिकाकर्ता को सरकार के सामने अपनी मांग रखने की सलाह दी है। अब यह देखना होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या कदम उठाती है। क्या सरकार बुजुर्गों के लिए अलग मंत्रालय बनाएगी या फिर इस पर कोई और नीति लागू करेगी, यह भविष्य में देखा जाएगा।