नई दिल्ली: इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आ गया है। कोर्ट ने राजनीतिक दलों को निर्देश दिया है कि चुनाव आयोग को 30 मई तक चंदे की जानकारी दी जाए। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकारी की इलेक्टोरल बॉन्ड की पॉलिसी के खिलाफ ऐसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) द्वारा याचिका दायर की गई थी। एडीआर ने मांग की थी कि इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने पर रोक लगाने के साथ ही चंदा देने वालों के नाम सार्वजनिक किए जाएं, ताकि चुनावी प्रक्रिया पारदर्शी हो।
उच्चतम न्यायालय ने कहा, अगले आदेश तक चुनाव आयोग भी चुनावी बॉन्ड से एकत्रित की गई धनराशि का ब्यौरा सील बंद लिफाफे में ही रखे। न्यायालय ने कहा कि वह कानून में किए गए बदलावों का विस्तार से परीक्षण करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि संतुलन किसी दल के पक्ष में न झुका हो। इससे पहले चुनावी बॉन्ड की वैधता को चुनौती देने वाली एनजीओ की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता संगठन एडीआर ने चुनावी बॉन्ड की वैधता को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता संगठन का कहना है कि चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए यह जानना जरूरी है कि इसके जरिये राजनीतिक दलों को चंदा कौन दे रहा है। संगठन के वकील का कहना था कि इनमें से ज्यादातर चंदा सत्तारूढ़ दल के पक्ष में गया है।
साल 2017-18 के बजट में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा राजनीतिक पार्टियों को दिए जाने वाले चन्दे में पारदर्शी बनाने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा की थी। इस साल के बजट ने लोगों को अपने पसंदीदा राजनीतिक दल के साथ जुड़ने का एक नया तरीका पेश किया। नए नियम के मुताबिक, 2000 से अधिक चन्दा केवल चेक या ऑनलाइन ही दिया जा सकता है। इस साल जनवरी में ही सरकार ने इन बॉन्ड की अधिसूचना जारी की। अधिसूचना के अनुसार, 1000 रुपये, 10,000 रुपये, 10 लाख रुपये और एक करोड़ रुपये के बॉन्ड जारी किए जाते हैं।
इन बॉन्ड को एसबीआई में अपने केवाईसी जानकारी वाले अकाउंट से दानदाता खरीद सकता है। राजनीतिक पार्टियां 15 दिनों के अंदर बैंक से इन बॉन्ड का पैसा ले सकती हैं। चुनावी बॉन्ड न तो टैक्स में छूट देते हैं और न ही ब्याज कमाने का साधन हैं। इसे चुनावी फंडिंग में सुधार के तरीके के रूप में प्रस्तावित किया गया है। बता दें कि बॉन्ड पर पैसा देना वालों का नाम नहीं होता है। साथ ही ये जानकारी भी सार्वजनिक नहीं की जाती है।