सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें यह कहा गया था कि निजी स्कूल फीस बकाया वसूलने के लिए छात्रों या उनके अभिभावकों पर दीवानी मुकदमा नहीं कर सकते। इस फैसले के बाद अब सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि क्या निजी स्कूल फीस वसूली के लिए सिविल अदालत में मुकदमा दाखिल कर सकते हैं या नहीं। यह मामला शिक्षा के अधिकार और निजी स्कूलों के प्रशासनिक अधिकारों के बीच अहम कानूनी सवालों पर आधारित है।
क्या है मामला?
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 2022 में यह फैसला दिया था कि निजी स्कूल फीस वसूली के लिए दीवानी अदालत में मुकदमा दायर नहीं कर सकते। अदालत ने स्कूलों को फीस वसूली के मामले में संबंधित फीस नियामक समिति (एफआरसी) के पास जाने का आदेश दिया था। स्कूल प्रबंधन इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर चुका है।
इस मामले में सिविल जज और अतिरिक्त जिला जज ने स्कूल प्रबंधन के पक्ष में फैसला दिया था, लेकिन इसके बाद अभिभावकों ने उच्च न्यायालय में अपील की थी। अभिभावकों ने आरोप लगाया था कि स्कूल ने अपनी फीस वृद्धि को पहले से सूचना नहीं दी थी और न ही इसे अपने वेबसाइट पर अधिसूचित किया था। इसके चलते अभिभावकों ने बढ़ी हुई फीस का भुगतान करने से इनकार कर दिया था। यह मामला 2011-12 से चला आ रहा है और इसके बाद स्कूल प्रबंधन ने फीस वसूली के लिए दीवानी अदालत में मुकदमा दायर किया था।
क्या कह रहे हैं पक्ष और विपक्ष?
इस मामले में, फरीदाबाद स्थित एपीजे स्कूल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एचएल टिक्कू ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उच्च न्यायालय का फैसला पूरे देश में कई स्कूलों पर असर डाल सकता है। उन्होंने कहा कि इस मामले में बहुत सालों से फीस बकाया है और स्कूल के पास इसे वसूलने का सही तरीका है।
वहीं, अभिभावकों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता संतोष त्रिपाठी और शिखा बग्गा ने इस फैसले का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले पर कोई रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। उनका कहना था कि कानून के तहत स्कूल प्रबंधन को फीस बकाया वसूलने के लिए दीवानी अदालत का सहारा लेने की अनुमति नहीं है। त्रिपाठी ने यह भी कहा कि स्कूल की प्रकृति चैरिटेबल होती है, इसलिए फीस वसूली के मामलों में स्कूलों को दीवानी अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और आगामी निर्णय
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। हालांकि, पीठ ने यह भी निर्देश दिया है कि सभी पक्षों को चार सप्ताह के भीतर अपने-अपने तर्क अदालत के समक्ष पेश करने का मौका दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट अब इस कानूनी सवाल पर विचार करेगा कि क्या निजी स्कूल फीस वसूली के लिए सिविल अदालत में मुकदमा दायर कर सकते हैं या नहीं।
कानूनी पहलू और आने वाले प्रभाव
इस मामले के सुप्रीम कोर्ट में आने के बाद शिक्षा और निजी स्कूलों के अधिकारों से जुड़ा यह मामला और भी जटिल हो गया है। जहां एक ओर स्कूल प्रबंधन ने फीस वसूली के लिए दीवानी अदालत का सहारा लेने की आवश्यकता जताई है, वहीं दूसरी ओर अभिभावकों का कहना है कि स्कूलों को अपने फैसलों और शुल्क की वृद्धि को सही तरीके से अधिसूचित करना चाहिए। इस मामले का फैसला न केवल स्कूलों और अभिभावकों के लिए, बल्कि पूरे देश में शिक्षा व्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।