नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट में 70 वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किए जाने के मामले में भाई-भतीजावाद के आरोपों को लेकर विवाद बढ़ गया है। यह मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने याचिकाकर्ता और उनके वकील को कड़ी फटकार लगाई। इस मामले में मुख्य बिंदु यह है कि याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि जजों के रिश्तेदारों को जानबूझकर वरिष्ठ वकील के तौर पर नामित किया गया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से यह तक पूछा कि वे कितने जजों के रिश्तेदारों के नाम बता सकते हैं, जिन्हें वरिष्ठ वकील बनाया गया?
क्या है पूरा मामला?
दिल्ली हाई कोर्ट में 29 नवंबर 2024 को जारी एक अधिसूचना के तहत, 70 वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया। यह नामांकन एक स्थायी समिति द्वारा वकीलों के कामकाजी मापदंडों और योगदान का मूल्यांकन करने के बाद किया गया था। इस प्रक्रिया में दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस मनमोहन के अलावा और भी वरिष्ठ न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं ने भाग लिया था। हालांकि, इस समिति से एक वरिष्ठ अधिवक्ता सुधीर नंदराजोग ने इस्तीफा दे दिया था। नंदराजोग ने आरोप लगाया कि जिन वकीलों को वरिष्ठता का दर्जा दिया गया, उनकी सूची बिना उनकी सहमति के बनाई गई थी।
इसी इस्तीफे के बाद यह मामला कोर्ट में पहुंचा। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि इस सूची में कई जजों के रिश्तेदारों को जानबूझकर वरिष्ठ वकील का दर्जा दिया गया, जिसे लेकर विवाद उठ गया। इस आरोप के चलते मामले ने तूल पकड़ा और याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई।
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील को कड़ी फटकार लगाई। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की बेंच ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि “आपके पास कितने उदाहरण हैं, जिसमें यह साबित हो कि किसी जज के बच्चे को जानबूझकर वरिष्ठ वकील का दर्जा दिया गया है?” कोर्ट ने याचिकाकर्ता से यह भी पूछा कि वह आरोपों को साबित करने के लिए कौन-कौन से ठोस प्रमाण पेश कर सकते हैं।
इस दौरान, याचिकाकर्ता के वकील मैथ्यूज जे नेदुम्परा ने आरोप लगाया कि “बार एसोसिएशन जजों से डरता है और इसीलिए यह आरोप लगाए गए हैं।” इस पर कोर्ट ने जवाब दिया कि “यह कानून की अदालत है, यहां पर आपको अपनी बात कानूनी तरीके से रखनी होगी। यह कोई भाषण देने का मंच नहीं है, जहां आप अपनी भावनाओं के आधार पर आरोप लगाएं।”
याचिका में संशोधन की दी हिदायत
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को याचिका में संशोधन करने के निर्देश दिए और कहा कि उन्हें बिना ठोस प्रमाण के आरोप नहीं लगाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि याचिकाकर्ता इन आरोपों को हटाने में विफल रहते हैं, तो इस पर कड़ी कार्रवाई की जा सकती है। इसके अलावा, कोर्ट ने याचिकाकर्ता को प्रक्रिया का पालन करने के लिए एक लेटर सर्कुलेट करने को कहा।
70 वकीलों की वरिष्ठता पदोन्नति: एक और विवाद
दिल्ली हाई कोर्ट में 70 वकीलों की वरिष्ठ वकील के रूप में पदोन्नति की प्रक्रिया में यह विवाद तब सामने आया जब वरिष्ठ अधिवक्ता सुधीर नंदराजोग ने समिति से इस्तीफा दे दिया। उनका कहना था कि जब पूरी सूची तैयार की गई थी, तब उनकी सहमति नहीं ली गई थी। उनके इस्तीफे के बाद यह आरोप सामने आया कि इस प्रक्रिया में भाई-भतीजावाद का खेल हुआ है और जजों के रिश्तेदारों को जानबूझकर वरिष्ठ वकील का दर्जा दिया गया।
क्या कहा था वरिष्ठ अधिवक्ता नंदराजोग ने?
नंदराजोग ने दावा किया था कि उम्मीदवारों की अंतिम सूची को उनकी सहमति के बिना तैयार किया गया था, जिसके चलते इस प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी थी। उनका कहना था कि यदि किसी प्रक्रिया में वरिष्ठ जजों की मंजूरी के बिना महत्वपूर्ण बदलाव किए जाएं, तो वह स्थिति गंभीर हो जाती है। उनका इस्तीफा देने के बाद विवाद और भी गहरा गया और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट में इससे पहले क्या हुआ था?
इससे पहले, 2 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई की थी और याचिकाकर्ता से इसे लेकर लेटर सर्कुलेट करने का निर्देश दिया था। साथ ही यह कहा था कि इस प्रक्रिया का पालन किया जाए और सभी आरोपों की उचित जांच होनी चाहिए। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से आरोपों को स्पष्ट करने की बात की है।
क्या होगा अगला कदम?
अब देखना यह है कि याचिकाकर्ता आरोपों को स्पष्ट करने के बाद किस दिशा में कदम बढ़ाते हैं। अगर वह आरोपों को स्पष्ट करने में विफल रहते हैं तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा कार्रवाई हो सकती है। इसके अलावा, यह मामला आगे क्या मोड़ लेगा, यह भी एक बड़ा सवाल है। फिलहाल दिल्ली हाई कोर्ट के 70 वकीलों की वरिष्ठ वकील के तौर पर पदोन्नति के मामले में एक बड़ा विवाद चल रहा है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट की नजर बनी हुई है।