सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि किसी को मियां-तियां और पाकिस्तानी कहना, भले ही अच्छा तरीका न हो, लेकिन यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह की बातें किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के समान नहीं हैं। इस मामले में झारखंड हाईकोर्ट का फैसला चुनौतीपूर्ण था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
क्या था मामला?
यह मामला सूचना देने वाले के साथ हुए एक दुर्व्यवहार से जुड़ा हुआ था। शिकायतकर्ता का आरोप था कि जब वह आरटीआई (सूचना का अधिकार) आवेदन से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए अपीलकर्ता के पास गया, तो आरोपी ने उसे ‘मियां-तियां’ और ‘पाकिस्तानी’ कहकर उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत किया। आरोप था कि इस दुर्व्यवहार में आरोपी ने न केवल अपशब्द कहे बल्कि शारीरिक बल का भी इस्तेमाल किया।
शिकायतकर्ता ने यह मामला पुलिस में दर्ज कराया और आरोपी के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की धाराओं के तहत एफआईआर की। इस पर झारखंड हाईकोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए उसे सजा देने का आदेश दिया था। लेकिन जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे अलग तरीके से देखा और आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 298 के तहत आरोप मुक्त कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे, ने इस मामले पर विचार करते हुए कहा कि भले ही ‘मियां-तियां’ और ‘पाकिस्तानी’ जैसे शब्द अपमानजनक हो सकते हैं, लेकिन इन्हें धर्म से जुड़ी भावनाओं को ठेस पहुंचाने के रूप में नहीं देखा जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह शब्दों का प्रयोग निश्चित रूप से ‘खराब तरीका’ हो सकता है, लेकिन यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि कोई भी शब्द या वाक्यांश, जो किसी व्यक्ति के धर्म, जाति, या नस्ल के खिलाफ नफरत या हिंसा को उकसाता हो, वह निश्चित रूप से एक गंभीर अपराध होगा। हालांकि, ‘मियां-तियां’ और ‘पाकिस्तानी’ जैसे शब्दों को केवल किसी व्यक्ति का अपमान करने के रूप में देखा गया और इन्हें धार्मिक भावनाओं को आहत करने के तौर पर नहीं माना गया।
क्या है धारा 298?
भारतीय दंड संहिता की धारा 298 के तहत, किसी भी व्यक्ति को जानबूझकर और बिना कारण के किसी दूसरे व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में सजा हो सकती है। इस धारा के तहत कोई ऐसा शब्द या वाक्य बोलने पर सजा मिल सकती है जो किसी व्यक्ति के धार्मिक विश्वास को जानबूझकर चोट पहुंचाने का उद्देश्य रखता हो। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि ‘मियां-तियां’ और ‘पाकिस्तानी’ कहने से इस धारा का उल्लंघन नहीं होता है, क्योंकि ये शब्द धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाते हैं।
झारखंड हाईकोर्ट का निर्णय
इस मामले की शुरुआत झारखंड हाईकोर्ट से हुई थी, जहां आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी। हाईकोर्ट ने इस मामले में आरोपी को दोषी ठहराया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसके फैसले को पलट दिया और आरोपी को बरी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हालांकि इस प्रकार की टिप्पणी अनुचित और अशोभनीय हो सकती है, लेकिन इसे अपराध के रूप में नहीं माना जा सकता।
क्या बदलता है यह फैसला?
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन मामलों में एक उदाहरण बन सकता है, जहां किसी व्यक्ति ने केवल अपशब्द कहे हों, लेकिन उसे धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप न लगे। हालांकि, यह स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपशब्द कहने को गलत माना, लेकिन इसे अपराध के रूप में नहीं देखा। इससे यह भी साबित होता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी धर्म, जाति, या समुदाय को लेकर नफरत फैलाने की कोशिश करता है, तो उसे दंडित किया जा सकता है, लेकिन केवल अपशब्द कहने से मामला अपराध की श्रेणी में नहीं आता।
इस फैसले से एक बात तो साफ है कि कोर्ट धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले मामलों में सख्त है, लेकिन इसी समय यह भी मानता है कि कुछ शब्द, चाहे वे आपत्तिजनक हो सकते हैं, लेकिन यदि उनका उद्देश्य किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है, तो उन्हें अपराध के रूप में नहीं देखा जा सकता।