सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून 1955 की धारा 6A को संवैधानिक मानते हुए 4:1 के बहुमत से फैसला सुनाया। CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने इस धारा को वैध ठहराया, जबकि जस्टिस जेपी पारदीवाला ने इसे असंवैधानिक माना।
फैसले के प्रमुख बिंदु
CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि असम अकॉर्ड अवैध शरणार्थियों की समस्या का राजनीतिक समाधान है और धारा 6A का उद्देश्य भी विधायी समाधान देना है। उन्होंने यह भी बताया कि 25 मार्च 1971 की कट ऑफ तारीख सही है, क्योंकि उस समय पूर्वी पाकिस्तान से असम में प्रवास अधिक था।
राज्यों का कर्तव्य
CJI ने यह स्पष्ट किया कि राज्यों का कर्तव्य बाहरी आक्रमण से नागरिकों की रक्षा करना है। उन्होंने अनुच्छेद 355 का उल्लेख करते हुए कहा कि इसे अधिकार के रूप में पढ़ने से नागरिकों और अदालतों को आपातकालीन अधिकार मिल जाएंगे, जो विनाशकारी हो सकते हैं।
पड़ोसी चुनने का अधिकार नहीं
जस्टिस सूर्यकांत और अन्य न्यायाधीशों ने कहा कि हम किसी को अपना पड़ोसी चुनने की अनुमति नहीं दे सकते, जो भाईचारे के सिद्धांत के खिलाफ है। उन्होंने यह भी कहा कि धारा 6A में मनमानी नहीं है, क्योंकि इसमें प्रवासियों के लिए स्पष्ट शर्तें निर्धारित हैं।