पतंजलि भ्रामक विज्ञापन मामले में योग गुरु रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई में व्यक्तिगत पेशी से छूट की मांग खारिज कर दी। वहीं शीर्ष अदालत ने मीडिया में विज्ञापन प्रकाशित करने के संबंध में कुछ शर्तें लागू की हैं।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी भ्रामक उत्पाद का समर्थन किसी सेलिब्रेटी या सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के द्वारा किया जाता है तो इसके लिए वो भी समान रूप से जिम्मेदार होंगे। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष के विवादित बयान पर नोटिस जारी करते हुए 14 मई तक जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने स्वास्थ्य मंत्रालय से एफएसएसएआई की ओर से मिली शिकायतों पर की गई कार्रवाई का डेटा भी मांगा है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार अब किसी विज्ञापन को मीडिया में प्रसारित या प्रकाशित करने से पहले विज्ञापनदाता को एक सेल्फ डिक्लेरेशन देना होगा। इसके बिना कोई भी विज्ञापन प्रकाशित और प्रसारित नहीं होगा। आईएमए के अध्यक्ष अशोकन ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आईएमए और प्राइवेट डॉक्टरों की प्रैक्टिस की आलोचना करना बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि अस्पष्ट बयानों ने प्राइवेट डॉक्टरों का मनोबल गिरा है।
गौरतलब है कि इससे पहले 23 अप्रैल को इसी मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आईएमए को डॉक्टरों द्वारा महंगी और अनावश्यक एलोपैथी दवाओं के लिखने पर फटकार लगाई थी। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए डॉक्टरों के प्रमुख संगठन आईएमए से कहा कि था कि अगर आप किसी पर उंगली उठाते हैं तो चार उंगलियां आप पर भी उठती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आईएमए से सवाल करते हुए कहा कि आपके डॉक्टर भी एलोपैथिक क्षेत्र में दवाओं का समर्थन कर रहे हैं। अगर ऐसा हो रहा है, तो हमें आप पर नजरें क्यों नहीं घुमानी चाहिए?