स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी सांसद संघमित्रा को हाईकोर्ट से नहीं मिली राहत, बिना तलाक कथित दूसरी शादी का है आरोप

 कथित रूप से बिना तलाक़ दिए दूसरी शादी करने व धोखा देने के आरोप के मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने भाजपा सांसद संघमित्रा मौर्या को राहत देने से इंकार कर दिया है. न्यायालय ने कहा है कि संघमित्रा मौर्या को तलब किए जाने का आदेश पारित कर, निचली अदालत ने कोई त्रुटि नहीं की है. न्यायालय ने यह भी कहा कि इसी मामले में 12 अप्रैल को भाजपा सांसद के पिता व पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या की भी याचिका खारिज की जा चुकी है. इन टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने परिवाद की कार्यवाही को निरस्त किए जाने की मांग वाली संघमित्रा मौर्या की याचिका को खारिज कर दिया है.

यह आदेश न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की एकल पीठ ने पारित किया है. पत्रावली के अनुसार सुशांत गोल्फ सिटी के रहने वाले वादी दीपक कुमार स्वर्णकार ने अदालत में संघमित्रा व स्वामी प्रसाद मौर्या समेत अन्य के ख़िलाफ़ परिवाद दाखिल किया है. वादी का आरोप है कि वह एवं संघमित्रा वर्ष 2016 से लिव इन रिलेशन में रह रहे थे. कहा गया है कि संघमित्रा और उसके पिता स्वामी प्रसाद मौर्य ने वादी को बताया की संघमित्रा की पूर्व शादी से तलाक़ हो गया है लिहाज़ा वादी ने 3 जनवरी 2019 को संघमित्रा से उसके घर पर शादी कर लिया, हालांकि बाद में जब उसे संघमित्रा के तलाक न होने की बात का पता चला तो शादी की बात उजागर न होने पाए इसलिए उस पर जानलेवा हमला कराया गया.

उक्त परिवाद को चुनौती देते हुए, संघमित्रा की ओर से दलील दी गई कि परिवादी द्वारा लगाए गए आरोपों में काफी विरोधाभास है जिन पर ध्यान देते हुए, निचली अदालत ने याची को तलब किया है. कहा गया कि निचली अदालत ने अपने न्यायिक मस्तिष्क का प्रयोग नहीं किया है. हालांकि न्यायालय ने इन दलीलों को अस्वीकार करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित तलबी आदेश में कोई कमी नहीं है.

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मैनहोल में गिरकर आठ साल के बच्चे शाहरुख की मौत की घटना का स्वतः संज्ञान लिया है. न्यायालय ने मामले में स्वतः संज्ञान जनहित याचिका दर्ज करते हुए, नगर आयुक्त, लखनऊ नगर निगम व उपाध्यक्ष, एलडीए को नोटिस जारी करने का भी आदेश दिया है. न्यायालय ने कहा है कि हम जानना चाहते हैं कि इस प्रकार के और कितने हादसे पहले हो चुके हैं तथा नगर निगम के अधिकारियों द्वारा क्या कोई लापरवाही की गई है. न्यायालय ने कहा है कि हम यह भी जानना चाहते हैं कि शहर में और ऐसे कितने मैनहोल खुले हुए हैं और यदि हैं तो नगर निगम के अधिकारियों की इस लापरवाही से लोगों की जिंदगियों को बचाने के लिए क्या उपाय किए गए हैं। मामले की अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होगी. यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय व न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने पारित किया है.

कोर्ट की नियमित कार्यवाही के दौरान न्यायालय ने अखबारों में छपी उक्त हादसे की खबर का संज्ञान लिया. वहीं बार की ओर से अधिवक्ता आदर्श मेहरोत्रा ने न्यायालय को बताया कि खबरों के मुताबिक शहर में ऐसे कई मैनहोल और पाइप लाइन हैं जो खुले पड़े हुए हैं और इस तरह के दर्दनाक हादसे की सम्भावना बनी हुई है. कहा गया कि यह नगर निगम की जिम्मेदारी है कि मैनहोल ठीक प्रकार से बंद रहें लेकिन निगम के अधिकारी अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर रहे हैं. इस पर न्यायालय ने खुले हुए ‘लखनऊ में खुले हुए मैनहोल व पाइप लाइन से नगरवासियों के जीवन के खतरे का मामला’ शीर्षक से जनहित याचिका दर्ज करने का आदेश दिया है.

 

 

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