वह ताड़ के घने जंगलों में पिंडी बनाकर मां की आराधना करते थे। बाबू बंधू सिंह से घबराकर अंग्रेजों ने उन्हें धोखे से गिरफ्तार कर लिया और फांसी की सजा सुनाई। कहते हैं कि उन्हें सात बार फांसी पर लटकाया गया और वह बच गए, क्योंकि बार-बार फांसी का फंदा टूट जाता था।

इसके बाद उन्होंने तरकुलहा देवी से आग्रह कर अपने चरणों में जगह देने की विनती की और आठवीं बार खुद ही फंदा अपने गले में डालकर शहीद हो गए। उनके शहीद होते ही दूसरी तरफ स्थित ताड़ का पेड़ टूट गया और उसमें से खून निकलने लगा। यह देखकर बाद में लोगों ने उसी जगह पर तरकुलहा देवी मंदिर का निर्माण कराया।