केंद्र सरकार अभी नहीं कराएगी इन नेताओं के संदिग्ध मौत की जांच

केंद्र सरकार पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीन दयाल उपाध्याय की मौत की जांच के लिए फिलहाल किसी आयोग का गठन नहीं करेगी। सरकार ने कहा है कि इन नेताओं की संदिग्ध मौत की जांच के लिए अभी किसी आयोग के गठन करने का प्रस्ताव नहीं है।

पूर्व पीएम शास्त्री की 11 जनवरी 1966 में तासकंद, श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 23 जून 1953 में श्रीनगर और दीन दयाल उपध्याय की 11 फरवरी 1968 में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी।

इन नेताओं के मौत की गुत्थी आज भी नहीं सुलझी है, शायद किसी को नहीं पता है कि इनकी मौत कैसे हुई।

लाल बहादुर शस्त्री –

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 में मुगलसराय मे हुआ था। ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री ने अपना पूरा जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया था। उनके पिता का नाम ‘मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव’ था, जो प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे।

दीनदयाल उपाध्याय –

दीनदयाल उपाध्याय का शव 11 फरवरी 1968 को दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन (पहले मुगल सराय रेलवे स्टेशन) के पास मिला था। बताया जा रहा है कि 12 फरवरी 1968 को नई दिल्ली में भारतीय जनसंघ संसदीय दल की बैठक होनी थी। इसी दौरान पटना में बिहार प्रदेश भारतीय जनसंघ की कार्यकारिणी की बैठक भी होने वाली थी। लिहाजा बिहार प्रदेश के जनसंघ के तत्कालीन संगठन मंत्री अश्विनी कुमार ने जनसंघ के अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय से बैठक में शामिल होने की अपील की थी।

इसके लिए उनको 10 फरवरी को फोन किया गया था। उनके मौत के कारण की तस्वीर अब तक साफ नहीं हो पाई है। हालांकि उनकी मौत को लेकर तरह तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी –

इसके अतिरिक्त 23 जून 1953 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जम्मू-कश्मीर में संदिग्ध हालात में मौत हो गई थी। अभी तक उनकी मौत रहस्य बनी हुई है। उनका जन्म पश्चिम बंगाल की राजधानी कलकत्ता में 6 जुलाई 1901 को हुआ था। वो भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। साल 1977 में भारतीय जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया था।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पिता सर आशुतोष मुखर्जी बंगाल के एक जाने-माने शख्स थे। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक और इंग्लैंड से बैरिस्टरी पास करने के बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए थे। वो जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट में उद्योग और आपूर्ति मंत्री भी रहे। हालांकि जवाहर लाल नेहरू से मतभेदों के चलते मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।

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