भारत की वो जगह जहां हजारों सालों से आज भी रह रहे हैं आदिवासी
अंडमान निकोबार द्वीप समूह के नॉर्थ सेंटिल नामक एक द्वीप में 18 नवबंर को एक अमेरिकी व्यक्ति की हत्या हुई थी. उनकी हत्या का आरोप सेंटिनल जनजाति के लोगों पर लगा है. जिनकी तादद अब महज 50 से 150 के बीच रह गई है.
60 हज़ार साल पहले आकर बसे थे भारत में
सेंटीनल जनजाति भारत की सबसे प्राचीन जनजाति में से एक है. वैज्ञानिको का मानना है कि इस जनजाति के लोग 60 हज़ार साल पहले अफ़्रीका से पलायन कर अंडमान में आकर बस गए थे. सेंटीनल जनजाति के लोग उत्तरी सेंटिनल द्वीप पर रहते है जो एक प्रतिबंधित इलाका है जहां आम इंसानो का जाना बिल्कुन मना है. इस द्वीप पर भारत का कोई नागरिक भी नहीं जा सकता.
बिना किसी बाहरी मदद के 2004 की सुमानी में भी बच गए थे
साल 2004 में जब हिंद महासागर में सुनामी आई थी तब प्रशासन ने बताया था कि इस जनजाति के लोग तबाही से बचने में कामयाब रहे थे.
नेवी का एक हेलिकापटर उत्तरी सेंटिनल द्वीप के पास गश्त कर रह था. हेलिकॉप्टर जैसे ही थोड़ा नीचे की तरफ उतरने लगा तो इस जनजाति के लोगों ने हेलिकॉप्टर पर तीरों से हमला करना शुरू कर दिया. इस हमले के बाद पायलट ने बताया, ‘इस तरह हमें पता लगा कि वहां रहने वाले लोग सुरक्षित हैं.’
1880 में दुनिया जान पाई थी इनके बारे में
ऐसा नहीं है कि इन जनजाति के लोगों से मिलने का प्रयास नहीं किया गया. जनवरी 1880 में मौरिस विडाल पोर्टमैन जो उस समय अंग्रेजी उपनिवेश के स्थानीय प्रशासक थे वो इस द्वीप का सर्वे करने के लिए लाव-लश्कर के साथ गए थे. बाहरी दुनिया के किसी व्यक्ति का यहां यह पहला प्रवेश माना जाता है. मौरिस के जत्थे को आता इन जनजाति के लोग घने जंगल में चले गए. कई दिनों तक इन्हे खोजने का प्रयास किया गया. कई दिनों की खोज के बाद दल को एक बुजुर्ग जोड़ा और चार बच्चे मिले. मौरिस उन्हें कैदी बनाकर पोर्टब्लेयर ले आए. बुजुर्ग जोड़े की बाद में मौत हो गई. वहीं बच्चों को उपहार देरकर जंगल में छोड़ दिया गया.
उसके बाद कई बार यहां जाने का प्रयास हुआ लेकिन सबका स्वागत तीर से ही किया गया. साल 2017 में भारत सरकार ने नया कानून बनाया जिसके बाद से यहां जाना प्रतिबंधित किया गया.