पितृपक्ष में है श्राद्ध का बहुत महत्व, जानें विधि

नई दिल्ली। बह्म पूराण के अनुसार, देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितृ यानि की पूर्वजों को पहले प्रसन्न करना आवश्यक है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में पितृपक्ष मनाया जाता है। इस साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से 16 दिन के श्राद्ध शुरू हो रहे हैं। इस साल ये 21 सितंबर से शुरू हो रहे हैं और 6 अक्टूबर को समाप्त हो रहे हैं। श्राद्ध को पितृपक्ष या महालय के नाम से भी जाना जाता है। श्राद्ध पित्तरों की शांती के लिए किए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध कर अपने पितरों को मृत्यु च्रक से मुक्त कर उन्हें मोक्ष प्राप्त करने में मदद करता है।

पितृ पक्ष जिसे श्राद्ध या कानागत भी कहा जाता है, श्राद्ध पूर्णिमा के साथ शुरू होकर सोलह दिनों के बाद सर्व पितृ अमावस्या के दिन समाप्त होता है। हिंदू अपने पूर्वजों (अर्थात पितरों) को विशेष रूप से भोजन प्रसाद के माध्यम से सम्मान, धन्यवाद व श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध के समय, पूर्वजों को अपने रिश्तेदारों को आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। श्राद्ध कर्म की व्यख्या रामायण और महाभारत दोनों ही महाकाव्य में मिलती है।

बह्म् पूराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधिदारा बाह्मण को श्रद्धा पूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पित्तरों को तृप्ति के लिए के भोजन पहुचांया जाता है पिण्ड रूप मे पित्तरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है। पितरों के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिण्ड तथा दान को ही श्राद्ध कहते है। मान्यता अनुसार सूर्य के कन्याराशि में आने पर पितर परलोक से उतर कर अपने पुत्र-पौत्रों के साथ रहने आते हैं, अतः इसे कनागत भी कहा जाता है।

पितृ अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और फिर साफ-सुथरे कपड़े पहनें। पितरों के तर्पण के लिए सात्विक पकवान बनाएं और उनका श्राद्ध करें। शाम के समय सरसों के तेल के चार दीपक जलाएं। इन्हें घर की चौखट पर रख दें। एक दीपक लें। एक लोटे में जल लें। अब अपने पितरों को याद करें और उनसे यह प्रार्थना करें कि पितृपक्ष समाप्त हो गया है इसलिए वह परिवार के सभी सदस्यों को आशीर्वाद देकर अपने लोक में वापस चले जाएं। यह करने के पश्चात जल से भरा लोटा और दीपक को लेकर पीपल की पूजा करने जाएं। वहां भगवान विष्णु जी का स्मरण कर पेड़ के नीचे दीपक रखें जल चढ़ाते हुए पितरों के आशीर्वाद की कामना करें। पितृ विसर्जन विधि के दौरान किसी से भी बात ना करें।

 
 

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