MP में कोयले का भंडारण काम होने के कारण से बिजली का संकट (MP Electricity Crisis) और भी बढ़ सकता है. प्रदेश में निरंतर कोयला भंडारण कम होता जा रहा है. इसका प्रभाव बिजली उत्पादन पर पड़ रहा है. प्रदेश के विभिन्न पावर प्लांट्स (Thermal Power Plants) में केवल 1-2 दिनों का ही कोयला बचा है.अगर प्रदेश को कोयला नहीं मिलता है तो आगामी दिनों में भरी संकट खड़ा हो सकता है. हालांकि फिलहाल ग्रामीण क्षेत्रो में बिजली की थोड़ी बहुत ही कटौती की जा रही है. अभी कहीं भी बड़े पैमाने पर बिजली की कटौती नहीं देखी जा रही है.
कोयले की कमी (Lack Of Coal) के बीच प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का कहना है कि अभी चिंता की कोई भी बात नहीं है. केंद्र सरकार से कोयले की अतिरिक्त मांग की गई है. उन्होंने बताया कि केंद्र की ओर से कोयले के कुछ अतिरिक्त रैक आए हैं. उन्होंने कहा कि फिलहाल राज्य सरप्लस की स्थिति में है. बाहर भी बिजली दी जा रही है. ऊर्जा मंत्री (Electricity Minister) ने कहा कि पूरे देश की तरह ही मध्य प्रदेश को भी संकट का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि लगातार वह केंद्र के संपर्क में हैं. जल्द ही इस समस्या का समाधान कर लिया जाएगा.
मध्यप्रदेश जनरेशन कंपनी के सबसे बड़े श्रीसिंगाजी थर्मल पावर में केवल 2 दिन का ही कोयला शेष बचा है. वहीं प्रदेश में बिजली की डिमांड 10 हजार मेगावाट तक पहुंच चुकी है. सूत्रों के मुताबिक थर्मल, वाटर, सोलर और विंड एनर्जी से सिर्फ 3900 मेगावाट बिजली का ही उत्पादन हो पा रहा है. शेष की बिजली सेंट्रल पावर से ली जा रही है. MP पावर जनरेटिंग कंपनी का कहना है कि प्लांट्स को प्रतिदिन 52 हजार टन कोयले की आवश्यकता होती है. इसके साथ ही थर्मल पावर के लिए हर रोज 25 हजार टन और सेंट्रल थर्मल पावर प्लांट के लिए 111 हजार टन कोयले की आवश्यकता होती है.
ध्यान दिला दें कि प्रदेश में अमरकंटक, सारणी, संजय गांधी और श्री सिंगाजी नाम के 4 सरकारी पॉवर प्लांट्स हैं बीते वर्ष से 6 अक्टूबर को 15 लाख 86 हजार टन कोयले का भंडारण था. परन्तु आज यह भंडारण कम हो कर 2 लाख 23 हजार टन रह गया है. इसी कारण से 5,400 मेगावाट की क्षमता वाले बिजली संयंत्रों में केवल 2,295 मेगावाट बिजली का ही उत्पादन हो रहा है. वहीं बिजली की आपूर्ति के लिए सरकारी और प्राइवेट क्षेत्रों से 6227 मेगावाट बिजली ली जा रही है. जिससे करीब 10 हजार मेगावाट बिजली की मांग के बराबर आपूर्ति की जा सके.
प्रदेश के रिजनरेशन के पश्चात भी हर रोज 80 हजार मीट्रिक टन कोयले की आवशकता होती है. लेकिन पावर जेनरेटिंग कंपनी के पास केवल 2 लाख 23 हज़ार मीट्रिक टन कोयला बचा है. यह तीन दिन की खपत के बराबर है. इस बार बारिश कम होने की वजह से जलाशयों में पानी की भी कमी हो गई है. वहीं कोयला संकट का भी सामने करना पड़ रहा है. दूसरे राज्यों से बिजली खरीद के लिए राज्य सरकार को बड़ी रकम खर्च करनी पड़ रही है. आने वाले समय में मध्य प्रदेश में बड़ा बिजली संकट खड़ा हो सकता है. दूसरे राज्यों से बिजली खरीदने के लिए जनता की जेब पर भी सरकार बोझ डाल सकती है.
मध्य प्रदेश में रबी की फसल के सीजन में सबसे ज्यादा बिजली की खपरत होती है. खबर के मुताबिक अगले 2 महीनों में 16 हजार मेगावाट तक डिमांड पहुंच सकती है. सरकारी श्रीसिंगाजी प्लांट के पास सिर्फ 2520 मेगावॉट मतलब सिर्फ 2 दिन का ही स्टॉक बाकी है. वहीं अमरकंटक प्लांट के पास 210 मेगावॉट, मतलब 7 दिन का स्टॉक, सारणी प्लांट के पास 1330 मेगावॉट, मतलब 5 दिन का स्टॉक और संजय गांधी प्लांट के पास 1340 मेगावॉट, 7 दिन का स्टॉक ही बाकी बचा है. मौजूदा ऊर्जा मंत्री कह रहे हैं कि फिलहाल चिंता की बात नहीं है. वहीं पूर्व ऊर्जा मंत्री और कांग्रेस विधायक प्रियव्रत सिंह का कहना है कि समय पर सब्सिडी का भुगतान नहीं होने की वजह से परेशानी हो रही है. सरकार अपनी लापरवाही को कोयले की कमी बता रही है.