नवरात्र के तीसरे दिन माँ की चंद्रघंटा के अवतार में आराधना की जाती है । श्रद्धालुओं के कल्याण के लिए आदिशक्ति विंध्यवासिनी नवरात्र के नौ दिनों में शक्ति के नौ रूपों में दर्शन देती है। “या देवी सर्वभूतेषु चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता नमः: तस्यै, नमः: तस्यै, नमः: तस्यै नमो नमः:” | नवरात्र के तीसरे दिन माँ की चंद्रघंटा के रूप में आराधना की जाती है । भक्तों के कल्याण के लिए आदिशक्ति विंध्यवासिनी नवरात्र के नौ दिनों में शक्ति के नौ रूपों में दर्शन देती है।चंद्रमा धारण करने वाली माँ अपने भक्तों को शीतलता प्रदान करने के साथ ही उनकी सारी मनोकामना को पूर्ण करती है ।
माँ के लिए भोग….
मां चंद्रघंटा को दूध से निर्मित वस्तुओ का भोग लगाया जाता है, मां को केसर की खीर और दूध से निर्मित मिठाई का भोग लगाना चाहिए। पंचामृत, चीनी व मिश्री भी मां को अर्पित करनी चाहिए।
इस श्लोक का उच्चारण करें
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।
अन्नतकाल से आस्था का केंद्र बिंदु रहे विंध्याचल में विंध्य पर्वत व पतित पावनी माँ भागीरथी के संगम तट पर श्री यंत्र पर विराजमान माँ विंध्यवासिनी को तीसरे दिन चंद्रघंटा के रूप में पूजन व अर्चन किया जाता है । भारत के मानक समय के लिए विन्दु के रूप में स्थापित विंध्य क्षेत्र में माँ को विन्दुवासिनी अर्थात विंध्यवासिनी के नाम सेभक्तों के कष्ट को दूर करने वाला माना जाता है । जहाँ एक ओर माँ चंद्रघंटा दुष्टों के संहार अपने घंटे के से करती हैं वहीँ भक्तों के कष्टों का नाश भी घंटे से निकलने वाली ध्वनि से हो जाती है । प्रत्येक प्राणी को सदमार्ग पर प्रेरित वाली माँ चन्द्रघंटा सभी के लिए आराध्य है । विद्वान् यह भी बताते हैं कि मंदिरों में घंटा लगाने का धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों महत्व है । साधकों के मणिपूरक चक्र जाग्रत होता है, भक्तो को हलुआ-पूड़ी का भोग माँ को अर्पण करने से सभी मनोकामना पूरी होती है
देवी चन्द्रघंटा के रूप में माँ की पूजा अर्चना से मणि चक्र जागृत होता है जिससे व्यक्ति का समय चक्र परिवर्तित होता है । धाम में आने वाले श्रद्धालु यहाँ आकर बहुत खुश हैं । भक्तों का कहना है कि मातारानी सभी मनोकामना पूरा करती है । पिछले कई वर्षों से देवी पाठ करने वाले भक्तो की झोली माँ ने भर दिया है । आने वाले भक्त मन की मुराद पूरा होने से बहुत ख़ुशी की अनुभूति करते हैं .