अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी 2025 को एक बार फिर राष्ट्रपति पद की शपथ लेने जा रहे हैं। ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में दुनिया भर से कई बड़े नेता शामिल हो रहे हैं। इसमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का नाम भी है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस सूची में जगह नहीं दी गई है। अब यह सवाल उठ रहा है कि ट्रंप ने मोदी को क्यों नहीं बुलाया और इस फैसले के पीछे क्या कूटनीतिक कारण हो सकते हैं।
तो चलिए, इस खबर को हम थोड़ा और विस्तार से समझते हैं और जानते हैं कि इस फैसले की वजह क्या है।
ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में जिनपिंग का निमंत्रण
डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के लिए जिनपिंग को आमंत्रित किया गया है, जबकि मोदी को नहीं। ट्रंप ने जिन नेताओं को बुलाया है, वे ज्यादातर उनके विचारधारा के करीब हैं या फिर जिनका समर्थन ट्रंप ने चुनाव के दौरान महसूस किया। हालांकि, जिनपिंग ने अपने किसी वरिष्ठ प्रतिनिधि को भेजने का निर्णय लिया है, तो सवाल यह उठता है कि भारत और अमेरिका के रिश्तों में इस फैसले का क्या असर पड़ेगा?
मोदी और ट्रंप के रिश्ते: एक कूटनीतिक संतुलन
हमने देखा कि जब ट्रंप ने मोदी से मुलाकात की इच्छा जताई थी, तब भारतीय कूटनीतिक तंत्र ने फैसला लिया था कि वह अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों से दूर रहेंगे। 2019 में जब ट्रंप और मोदी ने ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में एक साथ मंच साझा किया था, तो इसे भारतीय कूटनीतिक गलियारे में गलत तरीके से देखा गया था। उनका मानना था कि यह कार्यक्रम ट्रंप को चुनावी फायदा पहुंचा सकता था।
भारत की यह सोच थी कि अगर मोदी ने ट्रंप से मुलाकात की और कमला हैरिस जीत जातीं तो यह भारत-अमेरिकी रिश्तों के लिए नकारात्मक साबित हो सकता था। यही वजह थी कि मोदी ने ट्रंप से मुलाकात नहीं की। भारत ने यह कदम इसलिए उठाया ताकि भविष्य में किसी भी स्थिति में भारतीय कूटनीति पर असर न पड़े।
ट्रंप की नाराजगी और शपथ ग्रहण का निमंत्रण
ट्रंप को यह बात पसंद नहीं आई कि भारत ने उन्हें अपनी चुनावी रणनीति से दूर किया, खासकर जब वह मोदी से मुलाकात करना चाहते थे। हालांकि, ट्रंप अब राष्ट्रपति बन चुके हैं और शपथ ग्रहण समारोह के लिए उन्होंने कई ऐसे वैश्विक नेताओं को निमंत्रण भेजा है जो उनके पक्ष में हैं या जिनका समर्थन उन्हें चुनावों के दौरान मिला था। इसके अलावा, चीन के साथ उनके बिगड़े रिश्तों को देखते हुए उन्होंने शी जिनपिंग को भी बुलाया।
लेकिन सवाल यह है कि क्या इस फैसले का असर भारत-अमेरिका रिश्तों पर पड़ेगा? क्या मोदी का शपथ ग्रहण समारोह में न होना दोनों देशों के रिश्तों को नुकसान पहुंचाएगा?
भारत का कूटनीतिक संतुलन
भारत ने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि वह अपनी विदेश नीति में एक संतुलन बनाए रखे। भारत चाहता है कि उसका संबंध किसी एक पार्टी के साथ न होकर दोनों मुख्य दलों – डेमोक्रेट और रिपब्लिकन – के साथ समान रूप से मजबूत रहे। यही वजह है कि भारत ने ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह से खुद को अलग रखा। भारत ने यह सुनिश्चित किया कि अमेरिका के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ संबंधों में कोई भी असंतुलन न आए।
यह भारतीय विदेश नीति का एक बहुत ही समझदारी भरा कदम था, जिसमें उसने अपने दीर्घकालिक और वैश्विक हितों को प्राथमिकता दी।
विदेश मंत्री जयशंकर का अमेरिका दौरा और निमंत्रण
प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण में न शामिल होने के बावजूद, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दिसंबर में अमेरिका का दौरा किया था। उनका यह दौरा ट्रंप प्रशासन की ट्रांज़िशन टीम और अन्य उच्च अधिकारियों से मुलाकात करने के लिए था। इस दौरान उन्होंने भारत-अमेरिका के रिश्तों को और मजबूत करने के लिए चर्चा की।
भारत सरकार के उच्च अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह यात्रा दोनों देशों के रिश्तों में प्रगति की समीक्षा करने के उद्देश्य से थी। इसके अलावा, यह भी बताया गया कि भारत ने कभी भी किसी अमेरिकी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में औपचारिक रूप से हिस्सा नहीं लिया है, और भारत की विदेश नीति दोनों देशों के दलों के साथ समान रिश्तों को बनाए रखने पर केंद्रित है।
क्या है आगे का रास्ता?
प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल न होने का कोई दीर्घकालिक असर नहीं होगा। भारत-अमेरिका के रिश्ते मजबूत रहेंगे, चाहे व्हाइट हाउस में ट्रंप हों या कोई और। मोदी के इस फैसले का उद्देश्य केवल भारतीय कूटनीतिक संतुलन को बनाए रखना था, और इसका किसी भी अन्य देश से रिश्तों पर असर नहीं पड़ेगा।
भारत ने यह कदम इसलिए उठाया ताकि भविष्य में वह अमेरिकी राजनीति से अधिक प्रभावित न हो। भारत का ध्यान हमेशा अपनी दीर्घकालिक विदेश नीति पर रहा है, और यही उसकी सफलता की कुंजी भी है।