महिलाओं को महीने में एक बार लगाई जाने वाली एक सुई, गोली या कंडोम के बार-बार के इस्तेमाल से छुटकारा दिलाएगी. ये सुई उन्हें अपने शरीर पर अनचाहे गर्भ से और ज्यादा अधिकार से मुक्ति दिलाने में प्रभावी होगी. हालांकि, गर्भनिरोध का बोझ अब भी महिलाओं पर ज्यादा बना रहेगा, क्योंकि पुरुषों में कंडोम के इस्तेमाल और नसबंदी की दर में कमी आई है.
वहीं स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, कंडोम के इस्तेमाल में साल 2016 तक बीते 8 साल में 52 फीसदी की कमी आई है. जबकि, 73 फीसदी पुरुषों की नसबंदी के मामले भी कम हुए हैं. वहीं 2008 से 2016 के बीच गर्भनिरोधक गोलियों के उपयोग में भी 39 फीसदी की गिरावट आई है. ये स्थिति जल्द बदल सकती है क्योंकि विशेषज्ञों ने एक खास सुई को मंजूरी दी है, जिसको महीने में एक बार लेने के बाद महिलाओं पूरे महीने अनचाहे गर्भ से बची रहेंगी. ये सुई 25 मिलीग्राम कृत्रिम एस्ट्रोजेन, प्रोजेस्टेरोन व मेड्रोक्सीप्रोजेस्टेरोन और 5 मिलीग्राम एस्ट्रैडियोल साइपोनेट की निर्धारित खुराक वाले मिश्रण से बनी है.
एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन के संयोजन को अगस्त 1989 में प्रतिबंधित कर दिया था. साल 2017 में भारतीय चिकत्सा परिषद के तत्कालीन महानिदेशक डॉक्टर सौम्य स्वामीनाथन की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समूह ने सिफारिश कि की भारत के दवा महानियंत्रक (डीसीजीआई) सुई के जरिए दिए जाने वाले गर्भनिरोधक साइक्लोफेम से प्रतिबंध हटा दें. ताकि इसे व्यावसायिक रूप में मुहैया कराया जा सके. साइक्लोफेम प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन का संयोजन होता है.
मार्च 2018 में गर्भ निरोधक साइक्लोफेम से प्रतिबंद हटाने की व्यवहार्यता की जांच के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशालय ने आईसीएमआर में क्लीनिकल फार्माकॉलॉजी की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर नीलिमा क्षीरसागर की अध्यक्षता में एक उप-समिति गठित की.