UP: क्या मायावती उपचुनाव में बीजेपी की बी-टीम का टैग हटा पाएंगी?

उत्तर प्रदेश की सियासत में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का आधार लगातार कमजोर हो रहा है, और पार्टी के लिए बीजेपी की बी-टीम के रूप में अपनी छवि को बदलना एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। मायावती इस बार उपचुनाव में बीजेपी के इस टैग को तोड़ने के लिए पूरी ताकत से जुटी हुई हैं। वह सियासी बिसात बिछाकर बीजेपी और समाजवादी पार्टी (सपा) दोनों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही हैं। अब सवाल यह है कि क्या मायावती अपनी सियासी रणनीति में सफल हो पाएंगी और बीजेपी के बी-टीम के आरोपों से बाहर निकल पाएंगी?

मायावती की चुनौती: उपचुनाव में जीत की राह

बसपा प्रमुख मायावती के लिए उपचुनाव में जीत केवल सीटों पर कब्जा करने का मसला नहीं है, बल्कि यह 14 साल बाद उपचुनाव में अपनी वापसी और पार्टी की सियासी ताकत को फिर से साबित करने का मौका भी है। लोकसभा चुनाव में बसपा शून्य पर सिमट गई थी, और अब मायावती को उपचुनाव में अपनी पार्टी का खाता खोलने के साथ-साथ दलित वोट बैंक को एकजुट करने की भी चुनौती है। खासकर, दलितों का रुझान अब अन्य दलों की तरफ बढ़ रहा है, जिससे बसपा की मुश्किलें बढ़ गई हैं।

सवर्ण उम्मीदवारों के जरिए सियासी गणित उलझाया

मायावती ने इस बार उपचुनाव में सवर्ण और मुस्लिम दोनों समुदायों के उम्मीदवारों को टिकट देकर एक नया सियासी पैंतरा खेला है। मुस्लिम बहुल सीटों पर, जहां सपा और अन्य दल मुस्लिम प्रत्याशी उतार रहे हैं, मायावती ने सवर्ण उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जिससे वोटों का बिखराव हो सकता है। खासकर मीरापुर, कुंदरकी और कटेहरी जैसी सीटों पर बसपा ने अपने उम्मीदवार उतारकर सपा और बीजेपी दोनों के लिए समस्याएं खड़ी कर दी हैं।

सपा के लिए मुसलिम वोटों में बिखराव

मीरापुर और कुंदरकी सीट पर बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं, जिससे सपा को मुश्किल हो सकती है। मीरापुर में सपा के मुस्लिम प्रत्याशी सुम्बुल राणा के खिलाफ बसपा ने शाह नजर को मैदान में उतारा है। इसी तरह, कुंदरकी में सपा के हाजी रिजवान के खिलाफ बसपा ने रफत उल्ला को टिकट दिया है। इन सीटों पर मुस्लिम वोटों का बंटवारा सपा के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है, और यह उम्मीद जताई जा रही है कि इन सीटों पर आरएलडी को भी फायदा हो सकता है।

बीजेपी की राह में कांटे बिछाए

बसपा ने उपचुनाव में न सिर्फ सपा के लिए, बल्कि बीजेपी के लिए भी समस्याएं खड़ी की हैं। जैसे गाजियाबाद, सीसामऊ, फूलपुर, करहल और मझवां जैसी सीटों पर बसपा ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जिससे बीजेपी की सियासी राह मुश्किल हो गई है। करहल सीट पर बसपा ने शाक्य समुदाय के उम्मीदवार को टिकट दिया है, जो बीजेपी के परंपरागत वोटबैंक से जुड़ा है। इसके साथ ही, गाजियाबाद सीट पर बसपा ने वैश्य समुदाय से परमानंद गर्ग को उतारकर बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं, क्योंकि यह समुदाय आम तौर पर बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है।

क्या मायावती सियासी चाल में सफल होंगी?

मायावती ने अपनी सियासी बिसात इस तरह से बिछाई है कि वह न सिर्फ बीजेपी की बी-टीम के आरोपों से बाहर निकलने की कोशिश कर रही हैं, बल्कि वह आगामी विधानसभा चुनावों के लिए अपनी सियासी जड़ें भी मजबूत करना चाहती हैं। मझवां, खैर, मीरापुर और कटेहरी जैसी सीटों पर बसपा का मजबूत आधार रहा है और पार्टी ने इन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इसके साथ ही, मुस्लिम और सवर्ण दोनों ही समुदायों को टिकट देकर मायावती ने सपा और बीजेपी दोनों के लिए संकट पैदा कर दिया है।

बसपा के इस सियासी दांव के बाद, अब यह देखना होगा कि क्या मायावती बीजेपी के बी-टीम के टैग को हटा पाती हैं और आगामी चुनावों में पार्टी की ताकत को फिर से स्थापित कर पाती हैं। 2027 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर, यह उपचुनाव मायावती के लिए एक अहम कदम हो सकता है।

नतीजा क्या होगा?

मायावती का उपचुनाव में बीजेपी की बी-टीम के टैग से बाहर निकलने का सपना कितना सच होता है, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन उनके इस सियासी खेल ने यूपी की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है।

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