उत्तर प्रदेश उपचुनाव में 13% कम मतदान, सपा और बीजेपी के लिए चुनौती

उत्तर प्रदेश में 9 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में मतदान का प्रतिशत इस बार 49.3% रहा, जो 2022 के विधानसभा चुनावों के मुकाबले 13% कम है। इन सीटों पर 2022 में 62.14% वोट पड़े थे। इस गिरते मतदान को लेकर राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है, खासकर सपा ने बीजेपी और पुलिस प्रशासन पर वोटिंग में गड़बड़ी का आरोप लगाया है।
कौन सी सीट पर कितनी वोटिंग हुई?
चुनाव आयोग के अनुसार, मुरादाबाद की कुंदरकी सीट पर सबसे ज्यादा 57.7% मतदान हुआ, जबकि गाजियाबाद में यह आंकड़ा केवल 33.3% था। इसके अलावा मीरापुर में 57.1%, खैर में 46.3%, करहल में 54.1% और सीसामऊ में 49.1% मतदान हुआ। इनमें से किसी भी सीट पर 60% से ज्यादा मतदान नहीं हुआ, जो कि पहले के चुनावों की तुलना में बहुत कम था।
2022 के मुकाबले इस बार क्या बदला?
अगर हम 2022 के विधानसभा चुनावों के मतदान प्रतिशत को देखें, तो इन 9 सीटों पर कुल 62.14% मतदान हुआ था। 2022 में कुंदरकी सीट पर 71.26%, मीरापुर में 68.65%, खैर में 60.80%, करहल में 66.11% और सीसामऊ में 56.85% मतदान हुआ था। इस बार इन आंकड़ों में कमी साफ तौर पर देखी जा रही है।
क्या मतदान का कम होना नुकसानदेह साबित होगा?
उपचुनाव में 13% कम मतदान सपा और बीजेपी दोनों के लिए चिंता का विषय हो सकता है। खासकर सपा के लिए क्योंकि कम मतदान का असर उनके समर्थकों तक पहुंचने में हो सकता है। गाजियाबाद, खैर, फूलपुर और सीसामऊ जैसी सीटों पर 50% से कम वोटिंग हुई, जहां बीजेपी का प्रभुत्व रहा था। सपा के लिए यह चुनौती साबित हो सकती है, क्योंकि बीजेपी को इन सीटों पर बढ़त मिलती दिख रही है।
सियासी समीकरण और एग्जिट पोल
एग्जिट पोल में अनुमान लगाया गया है कि इस बार बीजेपी गठबंधन को 6 सीटों पर जीत मिल सकती है, जबकि सपा को केवल 3 सीटों पर ही सफलता मिलने की संभावना है। 2022 में सपा ने 4 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार के मतदान में बीजेपी को ज्यादा फायदा होता दिख रहा है। यह स्थिति सपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है।
सियासी हिसाब किताब
यूपी की इन सीटों का सियासी मिजाज भी काफी जटिल है। मीरापुर, कुंदरकी, और सीसामऊ जैसी सीटों पर मुस्लिम वोटरों की संख्या ज्यादा है, जबकि करहल में यादव वोटों का दबदबा है। फूलपुर में यादव, मुस्लिम और कुर्मी वोट निर्णायक भूमिका में होते हैं। इसी तरह, गाजियाबाद और खैर जैसी सीटों पर ब्राह्मण, वैश्य और दलित-जाट वोटरों का असर ज्यादा है। इन सब समीकरणों को ध्यान में रखते हुए चुनाव परिणामों का अनुमान लगाना मुश्किल है।
क्या प्रशासन की सख्ती ने कम मतदान को बढ़ावा दिया?
कम मतदान को लेकर एक और बडी वजह प्रशासन की सख्ती और पुलिस के रवैये को माना जा रहा है। कई इलाकों में मुस्लिम वोटरों का मतदान कम हुआ, और इसके पीछे प्रशासन की नाकेबंदी और सख्ती को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। विपक्षी दलों का आरोप है कि उनके वोटरों को मतदान करने से रोका गया, जबकि सत्ताधारी पार्टी बीजेपी ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधी रखी।
नतीजे क्या कहेंगे?
अब सभी की निगाहें उपचुनाव के नतीजों पर लगी हैं। मतदान में कमी और सियासी समीकरण के चलते यह चुनावी मुकाबला काफी दिलचस्प होने वाला है। चुनावी नतीजों से यह साफ होगा कि कम मतदान का असर किस पार्टी के पक्ष में जाता है।

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