लखनऊ, 22 नवंबर 2024: उत्तर प्रदेश में 9 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के बाद अब तक राजनीति के पंडित और सपा नेताओं के बीच हलचल तेज हो गई है। उपचुनाव के दौरान सपा के कब्जे वाली सीटों पर ज्यादा वोटिंग हुई है, फिर भी पार्टी ने कई सीटों पर दोबारा चुनाव कराने की मांग की है। इससे यह सवाल उठता है कि अधिक वोटिंग होने के बावजूद सपा को क्यों चिंता हो रही है, और पार्टी अब उपचुनाव रद्द करने की मांग क्यों कर रही है?
ज्यादा वोटिंग के बाद भी सपा की टेंशन बढ़ी
उपचुनाव के दौरान, सपा के कब्जे वाली सीटों पर बीजेपी के मुकाबले ज्यादा वोटिंग हुई। उदाहरण के तौर पर, कुंदरकी में 57.7% और मीरापुर में 57.1% मतदान हुआ, जो अन्य सीटों की तुलना में अधिक है। बावजूद इसके, सपा ने चुनाव आयोग से इन सीटों पर दोबारा वोटिंग कराने की मांग की है। पार्टी के नेताओं का आरोप है कि मतदान के दौरान गड़बड़ी की गई और उनके समर्थकों को वोट डालने से रोका गया।
सपा का आरोप: प्रशासन और पुलिस की सख्ती
सपा उम्मीदवारों और नेताओं ने यह भी आरोप लगाए हैं कि पुलिस ने कई बूथों पर सख्ती दिखाते हुए मुस्लिम समुदाय के मतदाताओं को वोट डालने से रोकने की कोशिश की। सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने इस बात को लोकतंत्र के लिए खतरा बताते हुए इन सीटों पर दोबारा मतदान की मांग की। खासतौर पर मीरापुर, कुंदरकी, सीसामऊ और कटेहरी सीटों पर यह आरोप लगे हैं।
मुस्लिम वोटों का बंटवारा सपा के लिए मुसीबत
मीरापुर और कुंदरकी सीट पर मुस्लिम वोटरों का बंटवारा सपा के लिए मुश्किल बन रहा है। सपा का कहना है कि मुस्लिम वोटों का विभाजन होने से उनका दबदबा कमजोर हुआ है, जबकि बीजेपी ने मुस्लिम वोटरों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की। मीरापुर में मुस्लिम उम्मीदवारों के बीच वोट बंटने से सपा को नुकसान हो सकता है, वहीं सीसामऊ में भी प्रशासन की सख्ती ने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में वोटिंग को प्रभावित किया।
सपा की सियासी चिंता
उपचुनाव के पहले, सपा के नेताओं का मानना था कि इन सीटों पर उनकी जीत पक्की है, खासकर उन सीटों पर जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या अधिक है। लेकिन अब जबकि वोटिंग के बाद स्थिति उलट रही है, सपा की चिंता बढ़ गई है। पार्टी के नेता आरोप लगा रहे हैं कि प्रशासन ने उनके समर्थकों को परेशान किया, और इस कारण सपा की राह कठिन हो गई है।
अखिलेश यादव का बयान
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उपचुनाव से एक दिन पहले कहा था कि यह चुनाव यूपी के भविष्य का फैसला करेगा और यह आजादी के बाद के सबसे कठिन चुनावों में से एक होगा। अब लगता है कि सपा की चिंताएं सच साबित हो रही हैं, क्योंकि जिन सीटों पर उन्होंने आसानी से जीत का अनुमान लगाया था, वहां अब हार का खतरा बढ़ गया है।
इससे एक बात तो साफ हो रही है कि यूपी के उपचुनाव सपा के लिए उतने आसान नहीं रहे, जितना पहले माना जा रहा था। पार्टी को अब अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा, और देखना होगा कि इन सीटों पर किस तरह से स्थिति बदलती है।