‘गुंडा विहीन कुंडा करौं, ध्वज उठाय दोउ हाथ.’ ये नारा कभी नब्बे दशक की शुरुआत में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने बोला था। कल्याण सिंह का गढ़ा ये नारा, भदरी रियासत के नए युवराज, ‘रघुराज’ पर हमेशा कालिख की तरह चिपक जाएगा।
खुद कल्याण सिंह के साथ रघुराज प्रताप सिंह ने भी नहीं सोचा होगा। हमेशा हवा का रूख देखकर चलने वाले रघुराज प्रताप सिंह ‘राजाभैया’ अब राजनीति के नए मौसम बन गए हैं।
अपने 24 साल से ज्यादा राजनीति कैरियर में राजाभैया ने सबसे संधि की, लेकिन किसी की धारा में बहने से बचते रहे। अब वो खुद सवर्ण पतवार लेकर राजनीति के समंदर में उतर चुके हैं। राजाभैया कभी राजनाथ तो कभी मुलायम और अखिलेश से हाथ मिलाते रहे, पर अब वो अपनी ‘जनसत्ता पार्टी’ बनाकर प्रदेश में नए समीकरणों को जन्म देने में जुट गए है। जिसका पहला प्रदर्शन वो 30 नवंबर को लखनऊ के रमाबाई मैदान में करेंगे।
ठाकुर वोटबैंक में राजाभैया की पकड़
राजा भैया अब तक भले ही प्रतापगढ़ की कुंडा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते रहे हों, लेकिन यूपी की करीब दो दर्जन से अधिक सीटों पर सवर्ण वोटों पर सीधा दखल रहा है। नई राजनैतिक पार्टी बनाने को लेकर सियासत के गलियारों में कई निहितार्थ निकाले जा रहे हैं।
बीजेपी से रही है नजदीकी
कोई युवराज को बीजेपी के इशारे पर पार्टी बनाने और बड़े नेताओं के संपर्क में रहने की बात कर रहा। तो कोई सपा को सीधा नुकसान पहुंचाने की बीजेपी की नई रणनीति बता रहा है। क्योंकि कुछ दिन पहले ही रघुराज प्रताप सिंह ने सीएम योगी के सरकारी आवास पर जाकर मुलाकात की थी। इससे पहले राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में मंत्री रह चुके राजाभैया के संबंध आज भी पहले जैसे ही हैं। उम्मीद थी की बीजेपी सरकार आने पर राजा भैया सरकार में शामिल हो सकते हैं, पर समर्थकों का भविष्य अंधकार में देखकर राजा ने कदम पीछे खींच लिए।
मुलायम से करीबी, अखिलेश से दूरी
सपा में मुलायम से उनके करीबी रिश्ते रहे हैं, लेकिन जियाउल हक हत्याकांड के बाद उनके बेटे अखिलेश यादव के साथ अनबन हो गई। बसपा सुप्रीमो मायावती से उनकी अदावत पुरानी है। वहीं दूसरी तरफ राज्यसभा चुनाव में सपा बसपा को ऐन मौके पर दांव देकर नई राजनीतिक दुश्मनी मोल ले ली है।
समर्थकों की चिंता भी कारण
राजा भैया की नई पार्टी का ऐलान समर्थकों के लिए वरदान है। क्योंकि राजा भैया के समर्थकों की माने तो रघुराज अपने समर्थकों के लिए ज्यादा परेशान थे। क्योंकि सपा पर अखिलेश यादव का राज है। अखिलेश से उनकी तल्खी जग जाहिर है, ऐसे में राजा के बीजेपी में जाने से अखिलेश से उनके समर्थकों को टिकट मिलने की उम्मीद कम है। वहीं बीएसपी और कांग्रेस से उनकी कभी पटी नहीं। बीजेपी में अमित शाह और मोदी की चल रही है। ऐसे में राजनाथ के करीबी उनके समर्थकों के काम नहीं आने वाली नहीं थी। जिसके बाद समर्थकों को एक जुट रखने के लिए राजाभैया के पास नहीं पार्टी में शरण देने के अलावा कोई चारा नहीं था।
बीजेपी की ‘बी टीम’ की चर्चा
राजा भैया नई पार्टी का गठन का ऐलान कर चुके हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि राजा राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। वो बीजेपी से पंगा कभी नहीं लेना चाहेंगे। नई पार्टी का गठन कर बीजेपी से नाराज सवर्ण वोट बैंक को अपना बना सकते हैं। सपा, बसपा में उपेक्षित ठाकुर और सवर्ण नेता भी राजा की छत्र छाया में आ सकते हैं। लोकसभा चुनाव के बाद राजा अपना विकल्प खुला रखना चाहते हैं। क्योंकि बीजेपी के साथ दोस्ती, राजनीतिक रिश्तेदारी में तब्दील हो जाए इसकी संभावना भी बनी रहे। क्योंकि बीजेपी की एसपी-बीएसपी के महागठबंधन की काट के लिए चल रही है। ऐसे में राजा भैया की पार्टी से मैदान में उतरे प्रत्याशी कई सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों की राह आसान कर सकते हैं।
यूपी की राजनीति के पंडित और वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ल की माने तो,