प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अमेरिका दौरे के दौरान एक महत्वपूर्ण समझौता किया है। इसके तहत नोएडा के जेवर एयरपोर्ट के पास दुनिया का पहला सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन प्लांट स्थापित किया जाएगा। इस प्लांट का मुख्य उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स का उत्पादन बढ़ाना है, साथ ही यह भारतीय और अमेरिकी रक्षा बलों को उच्च गुणवत्ता वाले चिप्स की आपूर्ति भी करेगा। इस प्लांट का नाम ‘शक्ति’ रखा गया है और इसे 2025 तक तैयार करने की योजना है।
अमेरिका के साथ समझौता
डेलावेयर में पीएम मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की मुलाकात के बाद एक संयुक्त फैक्टशीट जारी की गई, जिसमें नई तकनीकी साझेदारी के बारे में जानकारी दी गई। इस समझौते में राष्ट्रीय सुरक्षा और उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स पर जोर दिया गया है, जिससे सेमीकंडक्टर निर्माण को मजबूती मिलेगी। इस फैब्रिकेशन प्लांट में इन्फ्रारेड, गैलियम नाइट्राइड और सिलिकॉन कार्बाइड जैसे उन्नत सेमीकंडक्टर का निर्माण किया जाएगा।
सैन्य सुरक्षा का महत्व
यह प्लांट सैन्य सुरक्षा के नजरिए से भी बेहद महत्वपूर्ण है। इसमें बनने वाले उन्नत सेंसिंग चिप्स का इस्तेमाल नाइट विजन, मिसाइल सीकर, स्पेस सेंसर और ड्रोन जैसी तकनीकों में होगा। पीएम मोदी ने भरोसा दिलाया कि भारत में बने ये चिप्स जल्द ही अमेरिका समेत अन्य देशों में भी देखे जाएंगे, जिससे भारत एक प्रमुख सेमीकंडक्टर उत्पादक देश के रूप में उभरता नजर आएगा।
भारत का सेमीकंडक्टर मिशन
भारत सेमीकंडक्टर मिशन के तहत और भी इकाइयों की स्थापना की योजना बना रहा है। अमेरिका ने भारत में अपने प्लांट लगाने के लिए हरी झंडी दे दी है, जिससे देश की सैन्य ताकत में वृद्धि होगी। यह डील न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि आर्थिक समृद्धि का भी मार्ग प्रशस्त करेगी।
भविष्य की योजनाएं
पीएम मोदी का लक्ष्य है कि भारत में बने सेमीकंडक्टर चिप्स पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाएं। उनका कहना है कि आने वाले वर्षों में भारत में निर्मित चिप्स घरेलू जरूरतों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी अपनी जगह बनाएंगी। यह डील भारत के लिए एक नई शुरुआत है, जहां तकनीकी विकास और सैन्य सुरक्षा दोनों को प्राथमिकता दी जा रही है।
इस समझौते के जरिए भारत ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, जिससे न केवल देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी, बल्कि रक्षा क्षेत्र में भी नई संभावनाएं खुलेंगी। पीएम मोदी का यह प्रयास भारत को सेमीकंडक्टर उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।