उत्तर प्रदेश सरकार कारागार अधिनियम-1894’ में किया बदलाव , जानिए अब किस नए जुर्म में जेल और जुर्माना होगा !

उत्तर प्रदेश :UP सरकार ने ‘कारागार  अधिनियम-1894’ में एक बड़ा बदलाव  (संशोधन) बृहस्पतिवार यानी कल कर दिया है. इस संशोधन  के साथ ही अब उत्तर प्रदेश में  कारागार के भीतर  इस बदलाव किये  हुए कानून के विरुद्ध  काम करने वाले को जेल  और जुर्माना  दोनों ही  होंगे. दरअसल जिस मद में संशोधन  किया गया है या इस बदलाव के साथ जिस अपराध को ‘कानूनी जुर्म’ की श्रेणी में रखा गया है, वो अब तक सिर्फ up  की जेलों की ही नहीं बल्कि पूरे देश  भर के कारागारों की समस्या बना हुआ है. हालांकि इस प्रकार फेरबदल  से उम्मीद है कि प्रदेश  की जेलों में होने वाली गैरकानूनी ‘घुसपैठ’ पर काफी हद तक रोक  लग सकती है। .
कारागार  एक्ट 1894 में फेरबदल  के मुताबिक  अब प्रदेश के कारागारों में किसी भी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट के उपयोग को बैन  कर दिया गया  है. बदलाव किये गए कानून में निर्धारित किया गया है कि कारागार  के भीतर अगर कोई कैदी किसी भी तरह की इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स  (, मोबाइल बैटरी,  मोबाइल, बिना मोबाइल के ही सिम के साथ या फिर किसी भी दूसरे प्रकार के संचार यंत्र के साथ) के साथ पकड़ा जाता है तो वह संशोधित  हुए कानून के मुताबिक दोषी  माना जाएगा और उसके विरुद्ध  कारागार  प्रशासन नए (संशोधित प्रिजनर्स एक्ट 1894 के तहत) संबंधित थाने में मुकदमा लिखाएगा. सम्बंधित मामले की जांच बाकायदा थाना पुलिस की ओर  से की जाएगी. दोषी को गिरफ्तार करके अदालत  में बहैसियत मुलजिम पेश किया जाएगा. बाकी आपराधिक केस  की तरह ही आरोपी पर अदालत में मुकदमा चलेगा.

पहले क्या थे जेल के नियम ?

जब तक कारागार , जनपद  पुलिस या जनपद  प्रशासन को भनक लगती तब तक जेल में बैठे-बैठे ही कुख्यात अपराधी इन इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स  के इस्तेमाल से अपना काम कर  चुके होते थे. एक मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस फेरबदल  के बाद अब कारागार  से मोबाइल पर ही गैंग और सिंडिकेट चलाने वाले दोषियों  पर एक्शन लिया जाना तय है. अब जेल में बंद दोषियों  तक इस तरह के इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स  पहुंचाने वालों को भी डर  होगा. इस बात का कि अगर वो मोबाइल सिम या फिर कोई और इससे सम्बन्ध रखने वाले  संचार यंत्र जेल के भीतर या जेल के बाहर मौजूद किसी अपराधी तक पहुंचाते दबोचे  गए तो वे भी गिरफ्तार होकर जेल और सजा के हक़दार बना दिए जाएंगे. अब से पहले इस तरह का कुछ नियम  नहीं होता था. दोषी  के पास से मोबाइल फोन  इत्यादि जब्त करके जेल प्रशासन अपने पास रख लेता था. कुछ दिन जेल प्रशासन अपने स्तर पर जांच पड़ताल करता उसके पश्चात  वह भी शांत  हो  जाता था.

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