उत्तराखंड को जंगल की आग का सामना करना पड़ रहा है. हाल ही में अल्मोड़ा के जंगलों में लगी आग से तीन लोगों की जलकर मौत हो गई थी. अब तक 61 आगजनी की घटनाएं सामने आईं हैं, जिससे 1,107 हेक्टेयर फॉरेस्ट एरिया जलकर राख हो चुका है. अब जंगलों में लगी आग के कारण ग्लेशियरों पर ब्लैक कार्बन के प्रभाव पर चिंता सता रही है. ब्लैक कार्बन को ग्लेशियर के पिघलने से जोड़ा जाता है. दावों के मुताबिक, आग से गर्मी बढ़ती है और काला कार्बन उत्सर्जित होता है, जिससे वाटर सिस्टम और एयर क्वालिटी पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.
भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए उत्तराखंड में कई आग अलर्ट जारी किए हैं. वहीं, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के पूर्व वैज्ञानिक पीएस नेगी ने ब्लैक कार्बन में बढ़ोतरी के कारण ग्लेशियरों पिघलने को लेकर चिंता जताई है.
उन्होंने कहा कि गर्मियों में जंगल की आग के कारण वातावरण में ब्लैक कार्बन की मात्रा बढ़ जाती है, जिसका असर ग्लेशियरों के पिघलने और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ता है. विश्व बैंक की एक स्टडी के मुताबिक, ग्लेशियर पिघलने की गति को तेज करने में ब्लैक कार्बन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल क्लाइमेट चेंज के खतरा भी होता है.
जेसी कुनियाल समेत जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के रिसर्चर्स ने ग्लेशियरों पर ब्लैक कार्बन के विभिन्न सोर्स की पहचान की. कुनियाल ने कहा कि हम ब्लैक कार्बन जमा करने वाले कारकों का विश्लेषण करने की प्रक्रिया में हैं. विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने हिमालय में तेजी से ग्लेशियर पीछे हटने की चेतावनी दी है, जिससे ग्लेशियर झील के फटने से बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ जाएगा.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के हालिया स्टडी में कहा गया है कि उच्च पर्वतीय एशिया क्षेत्र (High Mountain Asia Region) और हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने की तेज गति और हिमनद झील के फटने से बाढ़ जैसे प्राकृतिक खतरों का खतरा बढ़ गया है.